For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल : न गाँधी से न मोदी से न खाकी से न खादी से

बह्र : १२२२ १२२२ १२२२ १२२२

--------

न गाँधी से न मोदी से न खाकी से न खादी से

वतन की भूख मिटती है तो होरी की किसानी से

 

ये फल दागी हैं मैं बोला तो फलवाले का उत्तर था

मियाँ इस देश में सरकार तक चलती है दागी से

 

ख़ुदा के नाम पर जो जान देगा स्वर्ग जायेगा

ये सुनकर मार दो जल्दी कहा सबने शिकारी से

 

ये रेखा है गरीबी की जहाजों से नहीं दिखती

जमीं पर देख लोगे पूछकर अंधे भिखारी से

 

चुने जिसको, सहे उसके सितम चुपचाप ये ‘सज्जन’

जमाने तंग आया मैं तेरी आशिक मिजाजी से

---------

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Views: 988

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on August 25, 2013 at 9:24pm

आदरणीय Saurabh जी आप जो भी कहते हैं नाप तौल कर कहते हैं। असहमत होने का मौका ही नहीं देते। स्नेह बनाये रखें।

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on August 25, 2013 at 9:21pm

बहुत बहुत शुक्रिया बागी जी, स्नेह बनाये रखें।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 25, 2013 at 12:40am

इस प्रस्तुति पर कुछ कहने के पूर्व एक बात अवश्य कहना चाहूँगा कि बहुत लोगों के सीखने का अंदाज़ तक लट्ठमार होता है. हाँ, इस दौरान कुछ अच्छी बातें भी होती रहती हैं और शिष्ट संतुलन बना रहता है.

शुभम्.. .

 

आदरणीय धर्मेन्द्र भाईजी की ग़ज़ल कई बार शाब्दिक हुई दिखती है. मुँह खोल कर बोलती है. आजकल संभवतः यही दौर है.

ग़ज़लों को इनकी आँखों से बोलने दें, आदरणीय. यही हम सब समवेत प्रयास करें. ग़ज़ल शिल्प के पगहे में आ चुकी है अब इसे भाषा-व्यवहार सिखाया जाये.  है न ?

सादर

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on August 21, 2013 at 10:19pm

बहुत बहुत धन्यवाद  Shijju S. जी


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on August 21, 2013 at 5:30pm

आदरणीय धर्मेंद्र जी बेहतरीन ग़ज़ल कही है आपने वाह दाद कुबूल करें

Comment by पीयूष द्विवेदी भारत on August 21, 2013 at 12:39pm

बहुत बहुत आभार, आदरणीय गणेश भईया ! बस आप सबके साथ से सीखे के कोशिश क रहल बानी ! स्नेह हरदम रहो !

Comment by पीयूष द्विवेदी भारत on August 21, 2013 at 12:37pm

सुझाव के समर्थन हेतु बहुत बहुत आभार, वीनस भाई जी !


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on August 21, 2013 at 8:58am

धर्मेन्द्र भाई, शानदार ग़ज़ल कही है, सभी शेर सामयिक हैं, कहन और वजन में बढ़िया सामंजस्य बैठाया है, भाई पियूष ने बिलकुल उस्तादाना सलाह दे डाली है, "गाँधी" लिखने से ये आज के गाँधियों का ध्यान तो तनिक भी नहीं आता । बहुत बहुत बधाई इस प्रस्तुति पर । 
मैं पियूष को बहुत बहुत धन्यवाद देना चाहूँगा जो इस उस्तादी से बात को पकड़ा है, भाई तोहरा में बदलाव लउकत बा :-)

Comment by वीनस केसरी on August 20, 2013 at 11:51pm

पियुष द्विवेदी 'भारत' जी ने शानदार सुझाव प्रस्तुत किया है ... 

Comment by पीयूष द्विवेदी भारत on August 20, 2013 at 9:07pm

आपने मेरी बात को मान दिया, बहुत बहुत आभार !

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service