For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

राज़ नवादवी: मेरी डायरी के पन्ने-५३ (स्लौटर हाउस)

रात के ग्यारह बजे मैं और मेरे दोस्त रदीफ़ भाई भोपाल से दिल्ली एअरपोर्ट पहुंचे! रदीफ़ भाई को जो रोज़े पे थे कल सुबह ‘सहरी’ करनी थी सो लिहाज़ा हम पहाड़गंज के एक ऐसे होटल में रुके जहाँ सुबह के तीन बजे खाना मिल सके. होटल पहुंचते- पहुंचते रात के बारह से ज़्यादा बज गए. सामान कमरे में रख मैं नई दिल्ली रेलवे स्टेशन की और चल पड़ा जो पास ही था- अपने कॉलेज के दिनों की कुछ यादों से गर्द झाड़ता हुआ. कुछ भी क्या बदला था- वही ढाबों की लम्बी कतार, जगह-जगह उलटे लटके तंदूरी चिकन की झालरें, तो कहीं शुद्ध शाकाहारी खाने का बोर्ड, फुटपाथ पे लाशों की तरह बिछे सोते लोग, और जगमगाता और मुसाफिरों से ठसाठस भरा नई दिल्ली का रेलवे स्टेशन!

 

कल दोपहर में एनएसडीसी में हमारी मीटिंग थी. सुबह के करीब दस बजे रदीफ़ भाई के दोस्त बकर भाई और बकर भाई के हममंसब (कलीग) प्रकाश भी उनसे मिलने आ पहुंचे. बकर भाई जिन्होंने बिलकुल साफ़ और सफ़ेद कुर्ता-पाजामा और उस पर से सुफेद जूता पहन रखा था एक कद्दावार और खुशगवार शख्सियत के मालिक दिख रहे थे.

 

रदीफ़ भाई की यह एक ज़ाती (पर्सनल) तिजारती (बिजनेस) मीटिंग थी. किसी स्लौटर हाउस को टेक-ओवर करने की तजवीज़ (प्रस्ताव) पे चर्चा हो रही थी. रदीफ़ भाई का अपना आबाई पेशा भी ज़िंदा जानवरों को गल्फ़ के मुल्कों में  बरामदात (एक्सपोर्ट) का है. यह बात भी मुझे तब ही मालूम हुई. वैसे तो वो खुद नौकरीपेशा हैं. हर रोज़ हजारों बकरे, भैंस, भेड़, और मुर्गियां हिन्दोस्तान से बाहर के मुल्कों में कटने और खाए जाने को भेजे जाते हैं. और बाहर ही क्यूँ, बकर भाई कह रहे थे अकेले दिल्ली में ही हर रोज़ दो-तीन हज़ार से ज़्यादा भैंस कटते हैं और रदीफ़ भाई के मुताबिक़ भोपाल में भी कोई ५००-६०० से कम भैंस नहीं कटते, बकरे और मुर्गियों की तो बात ही क्या.

 

हम सभी दो कारों में अपने होटल से वज़ारतेखुराक (खाद्य मंत्रालय) के महकमा-ए-गिज़ाई तहफ्फुज़ (खाद्य प्रसंस्करण विभाग) पहुंचे. वहाँ हमारी मुलाकात किसी नदीम भाई से थी जो महकमे में कोई अफसर थे. नदीम  भाई बकर भाई के जानने वाले थे. उन्होंने बड़ी तफसील (विस्तार) से रदीफ़ भाई को स्लौटर हाउस खोलने के तमाम कायदा-ओ-क़ानून से वाकिफ कराया, तकरीबन ८० से ९० करोड़ रुपयों की दरकार होती है एक उम्दा और ज़दीदी (मॉडर्न) स्लौटर हाउस खोलने के लिए.

 

वापसी में कुछ दूर हम सभी बकर भाई की कार में हौज़ ख़ास तक आए. वहाँ से मैं, रदीफ़ भाई, और प्रकाश अलग कार में सवार हो गए. बकर भाई को किसी कारोबारी सिलसिले से दिल्ली के गाजीपुर जानवरों की मंडी जाना था.

 

मैं रदीफ़ भाई से खुद को यह कहने से रोक न सका- ‘अरे रदीफ़ भाई, बकर भाई की कार और उनके कपड़ों से ये कैसी अजीब सी भैसों वाली महक आ रही थी!” रदीफ़ भाई जोर से हंस पड़े और कहा आप ठीक कह रहे हैं. प्रकाश ने बताया ये तो कुछ नहीं, आज ये अपनी हुंदई अस्सेंट नहीं लाये, वरना उसमें में तो बैठना बिलकुल मुहाल ही था, दिन भर ज़्यादातर वो कार उनके स्लौटर हाउस या नहीं तो गोश्त की मंडी में खड़ी रहती है.

 

प्रकाश रास्ते भर हमें तफसील से ये बताता रहा कि किस तरह जानवरों को मॉडर्न स्लौटर हाउसेज़ में बड़ी ही सफाई से काटा जाता है- रोलिंग बेल्ट पे जानवर पेप्सी की बोतलों की तरह एक के बाद एक आगे बढ़ाए जाते हैं, और अगले लम्हे कोई हुक उनकी खाल को चीरता उन्हें कंधे से खुद पे लटका लेता है, और उसके अगले लम्हे एक तेज़धार ब्लेड उनका सर कलम कर देती है, कोई दूसरी मशीन खाल उधेड़ लेती है, कोई और मशीन उनकी आंतें, अंतड़ियां, और गू सफ़ाई से निकाल लेती है, तो एक और मशीन लाशों को अच्छी तरह से धोकर चिलिंग प्लांट को रवाना कर देती है जिन्हें बाद में टुकड़े- टुकड़े कर पैक कर दिया जाता है.  

 

दिल्ली एअरपोर्ट आ चुका था और मैं मन ही मन सोच रहा था कि कैसे कोई स्लौटर हाउस चलाने वाला बकर भाई इतना खुशरू (हंसमुख) और मासूम दिख सकता है जैसे कि वो सचमुच दिखते थे. मैंने ये भी सोचा कि अब मैं कभी गोश्त नहीं खाउंगा.  

 

तमाम मीटिंग और मुलाकातों के सिलसिले में मैं लंच नहीं ले पाया था और रदीफ़ भाई का तो वैसे भी रोज़ा था. एअरपोर्ट लाउंज पे सिक्यूरिटी चेक के बाद हम एक अच्छे से रेस्तरां गए, ४९९ रु में बुफ़े मिल रहा था. भूख इतनी लगी थी कि मैंने बुफे लेने की सोचा. एक से एक खाने की चीज़ें कतारों में सजी थीं- सूप सलाद, पापड़, दही, पनीर, कोफ़्ता, बिरयानी, नान, चिकन, मटन, खीर, आइसक्रीम वगैरह-वगैरह.

 

मेरी प्लेट खाने की चीज़ों से लबालब भर चुकी थी. जायकेदार मसालों से बने बिरयानी, मटन, और चिकन को खाते मैं ये भूल गया था ये वही बकरे और मुर्गियां हैं जो बकर भाई के जैसे किसी स्लौटर हाउस से यहाँ आए हैं.

 

 

© राज़ नवादवी

भोपाल बुधवार ३१/०७/२०१३

प्रातःकाल ०९.०० बजे   

 

मेरी मौलिक व अप्रकाशित रचना 

Views: 515

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by राज़ नवादवी on August 2, 2013 at 12:07am

आदरणीया महिमा जी, आपका बहुत बहुत शुक्रिया जो आपने पढ़ने की ज़हमत उठाई, वरना आजकल लोग डायरियां कहाँ पढ़ते हैं. आपकी बधाई का आभारी हूँ. आपको मेरी लेखनी पसंद आई, इसका भी शुक्रगुज़ार हूँ. - राज़ 

Comment by MAHIMA SHREE on August 1, 2013 at 9:35pm

स्लौटर हाउस का भयावह व् दर्दनाक चित्रण और साथ ही इंसानी फितरत का   बेबाक सच  भी  बड़ी ही ईमानदारी से आपने प्रस्तुत किया ..बधाई स्वीकार करें .. आपकी लेखनी बरबस ही  बाँध ले जाती है ... हर शब्द हर  वाक्य चित्र की तरह उभर के आते हैं ..

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Sunday
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Friday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Friday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service