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ये माना चाल में धीमा रहा हूँ
मगर जीता वही कछुवा रहा हूँ ||

बुझाई प्यास कंकर डाल मैंने
तेरे बचपन का वो कौवा रहा हूँ ||

कभी बख्शी थी मेरी जान उसने
छुड़ाया शेर को,चूहा रहा हूँ ||

कुँये में शेर को फुसला के लाया
बचाई जान वो खरहा रहा हूँ ||

मेरे बचपन न फिर तू आ सकेगा
तेरी यादों से दिल बहला रहा हूँ ||

आदित्य नगर,दुर्ग (छत्तीसगढ़)
शम्भूश्री अपार्टमेंट,विजय नगर,जबलपुर (मध्यप्रदेश)

[ओबीओ लाइव तरही मुशायरा-37 में याद ही नहीं रहा था कि अधिकतम दो गजलें ही प्रेषित की जा सकती हैं,मुझे तीन का ही ध्यान रहा. गलती से तीसरी गज़ल भी पोस्ट कर बैठा था. गलती के लिए क्षमा चाहता हूँ, वही गज़ल ब्लॉग में पोस्ट कर रहा हूँ]

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Comment by Dr Ashutosh Mishra on August 1, 2013 at 12:34pm

aaderneey arun je apnee betee se poochh raha tha har sher se judee shandaar kahaniyan ..ye kahaniyan har hinustaaanee kee rag rag mein hain ..aapne bhee kamal kar diya sar ...dheron bdhayee sweekareein

Comment by बसंत नेमा on August 1, 2013 at 10:48am

आ0 अरुण जी   बहुत सुन्दर एक बार फिर बचपन की सारी कहानिया याद दिला दी आप ने...अति सुद्नर ,,, बधाई शुभकामनाये  

कृपया ध्यान दे...

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