For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

दर्दे सितम जो डोरे दिल कमज़ोर कर गए ।
माला से दिल की टूट कर मोती बिखर गए ।

ता उम्र हमने रखा जिनको सहेज़ कर ,
हाथो से मेरे छूट कर जाने किधर गए ।

अरमा अधूरे रह गये दिल में जो प्यार के ,
बनकर के अश्क वो मेरी आँखों में भर गए ।

आये थे दिल की दास्ताँ सुन ने वो शौक से ,
गहराइयों में दिल की झाँका तो डर गए ।

दो पग भी उनके बिन चलूँ मुमकिन न हो सका ,
हमतो खड़े ही रह गए रस्ते गुज़र गए ।

ज़िंदा हमे समझ रहे उनको खबर नही ,
जिस रोज उनसे बिछड़े उस दिन ही मर गए ।

नीरज
मौलिक व अप्रकाशित

Views: 745

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by राजेश 'मृदु' on August 12, 2013 at 4:05pm

सुंदर प्रस्‍तुति के लिए हार्दिक बधाई, सादर

Comment by अरुन 'अनन्त' on August 11, 2013 at 3:06pm

आदरणीय नीरज भाई जी तकाबुले रदीफ़ का दोष यहीं ओ बी ओ पर पाठशाला के भीतर ग़ज़ल की बातें में वीनस जी द्वारा बताई गई है एक बार देख लें ये रहा लिंक http://www.openbooksonline.com/group/gazal_ki_bateyn/forum/topics/5...

Comment by Neeraj Nishchal on August 11, 2013 at 2:46pm

जीतेंन्द्र जी बहुत बहुत
अनुग्रहीत हूँ आपकी टिप्पणी से ।

Comment by Neeraj Nishchal on August 11, 2013 at 2:45pm

आदरणीय अरुण जी आप का बहुत बहुत आभार
तकाबुले रदीफ़ का दोष क्या होता है अगर बताएँगे
तो बहुत मेहरबानी रहेगी ......

Comment by Neeraj Nishchal on August 11, 2013 at 2:44pm

बहुत बहुत अनुग्रह करता हूँ आदरणीय
अरुण जी आपके अनुमोदन के लिए ।

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on August 11, 2013 at 2:01pm

ता उम्र हमने रखा जिनको सहेज़ कर ,
हाथो से मेरे छूट कर जाने किधर गए ।..........यह शेर बहुत उम्दा है

हार्दिक बधाई आदरणीय नीरज जी

Comment by अरुन 'अनन्त' on August 11, 2013 at 1:07pm

आदरणीय नीरज भाई ग़ज़ल बेहद सुन्दर बन पड़ी है इस हेतु बधाई स्वीकारें मुझे दो अशआरों में तकाबुले रदीफ़ का दोष लग रहा है, कृपया एक बार पुनः देख लें


अरमा अधूरे रह गये दिल में जो प्यार के ,
बनकर के अश्क वो मेरी आँखों में भर गए ।

आये थे दिल की दास्ताँ सुन ने वो शौक से ,
गहराइयों में दिल की झाँका तो डर गए ।

Comment by Abhinav Arun on August 11, 2013 at 12:54pm

आये थे दिल की दास्ताँ सुन ने वो शौक से ,
गहराइयों में दिल की झाँका तो डर गए ।

bahut khoob neeraj ji shaandaar ghazal hui hai badhai . vishes kar is sher ke liye !!

 

Comment by Neeraj Nishchal on August 10, 2013 at 9:03pm

बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीया अनुपमा जी

Comment by Neeraj Nishchal on August 10, 2013 at 9:02pm

बहुत बहुत आभार बसंत नेमा जी ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"आ. भाई सुरेश जी, सादर अभिवादन। बहुत भावपूर्ण कविता हुई है। हार्दिक बधाई।"
12 hours ago
Aazi Tamaam posted a blog post

ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के

२२ २२ २२ २२ २२ २चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल केहो जाएँ आसान रास्ते मंज़िल केहर पल अपना जिगर जलाना…See More
18 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

गहरी दरारें (लघु कविता)

गहरी दरारें (लघु कविता)********************जैसे किसी तालाब कासारा जल सूखकरतलहटी में फट गई हों गहरी…See More
20 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

शेष रखने कुटी हम तुले रात भर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

212/212/212/212 **** केश जब तब घटा के खुले रात भर ठोस पत्थर  हुए   बुलबुले  रात भर।। * देख…See More
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन भाईजी,  प्रस्तुति के लिए हार्दि बधाई । लेकिन मात्रा और शिल्पगत त्रुटियाँ प्रवाह…"
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ भाईजी, समय देने के बाद भी एक त्रुटि हो ही गई।  सच तो ये है कि मेरी नजर इस पर पड़ी…"
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय लक्ष्मण भाईजी, इस प्रस्तुति को समय देने और प्रशंसा के लिए हार्दिक dhanyavaad| "
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश भाईजी, आपने इस प्रस्तुति को वास्तव में आवश्यक समय दिया है. हार्दिक बधाइयाँ स्वीकार…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी आपकी प्रस्तुति के लिए हार्दिक धन्यवाद. वैसे आपका गीत भावों से समृद्ध है.…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अखिलेश जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त चित्र को साकार करते सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Saturday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"सार छंद +++++++++ धोखेबाज पड़ोसी अपना, राम राम तो कहता।           …"
Saturday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"भारती का लाड़ला है वो भारत रखवाला है ! उत्तुंग हिमालय सा ऊँचा,  उड़ता ध्वज तिरंगा  वीर…"
Friday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service