नींद चीज है बड़ी उंघते रहिए
बेफिक्री में आंखे मूंदते रहिए
आग लगती है लगे हमको क्या
आम दशहरी जनाब चूसते रहिए
मौका मिले तो तंज कर लो
नहीं तो मस्ती में झूमते रहिए
आसां नहीं है अहम को तोड़ना
दुनिया अजब है घूमते रहिए
अदाकार आप खूब है जनाब
सूत्रधार की भूमिका निभाते रहिए
बातें विक्षिप्त की है आपसे बाहर
हंसी चेहरे पर कूटिल दिखाते रहिए
"मौलिक व अप्रकाशित"
Comment
आदरणीय आशुतोष जी और सौरभ जी आभार आपका आपने प्रोत्साहित किया
आग लगती है लगे हमको क्या
आम दशहरी जनाब चूसते रहिए बेहतरीन ग़ज़ल के इस शेर का जवाब नहीं हार्दिक बधाई के साथ
आदरणीय रौशन विक्षिप्तजी, आपकी द्विपदियों में इतनी ताकत है कि आपनी बात जगह तक पहुँचा सके. लेकिन इसके अलावे भी आपको इन्हें सुगढ़ करना होगा. क्योंकि विधा का सकारात्मक व्यवहार संप्रेषणीयता को ठोस आधार देता है. ऐसा मेरा मानना है.
सादर
आदरणीय केवल प्रसाद जी आपको स्नेह प्राप्त हुआ आभार आपने प्रोत्साहित किया
आ0 रौशन भाई जी, अच्छा प्रयास हुआ है। कृपया गजल की बह्र अवश्य लिख दिया करें। जिससे कहन को समझने में आसां हो जाता है। कहीं कहीं बह्र समझ में नहीं आ रही है। शुभ शुभ...सादर
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