बह्र : १२२२ १२२२ १२२२ १२२२
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न गाँधी से न मोदी से न खाकी से न खादी से
वतन की भूख मिटती है तो होरी की किसानी से
ये फल दागी हैं मैं बोला तो फलवाले का उत्तर था
मियाँ इस देश में सरकार तक चलती है दागी से
ख़ुदा के नाम पर जो जान देगा स्वर्ग जायेगा
ये सुनकर मार दो जल्दी कहा सबने शिकारी से
ये रेखा है गरीबी की जहाजों से नहीं दिखती
जमीं पर देख लोगे पूछकर अंधे भिखारी से
चुने जिसको, सहे उसके सितम चुपचाप ये ‘सज्जन’
जमाने तंग आया मैं तेरी आशिक मिजाजी से
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(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
ऐसा ही कुछ करना पड़ेगा पियूष जी, सुझाव के लिए बहुत बहुत धन्यवाद
यहाँ गाँधी का अर्थ राहुल गाँधी, प्रियंका गाँधी, सोनिया गाँधी यानि गाँधी परिवार से है।
आदरणीय धर्मेन्द्र जी, आपकी बात ठीक है, पर आप मानिए कि प्रथम द्रष्टया ये मतला देखने पर ख्याल गांधी जी का ही आता है ! आप चाहें तो इसे ऐसे कर सकते हैं, "न राहुल से न मोदी से न खाकी से न खादी से"...सादर !
अनुमोदन के लिए शुक्रिया, वीनस भाई जी !
पियुष द्विवेदी 'भारत' जी की बात में दम है
यहाँ गाँधी का अर्थ राहुल गाँधी, प्रियंका गाँधी, सोनिया गाँधी यानि गाँधी परिवार से है। महात्मा गाँधी के बारे में यदि बात होती तो मैंने ‘गाँधी जी’ लिखा होता। अपनी बात रखने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया पियुष द्विवेदी जी। इसमें अशिष्ट कुछ भी नहीं है। प्रकाशन के बाद हर पाठक को रचना पर अपना मत व्यक्त करने का अधिकार होता है। स्नेह बनाये रखें।
गज़ल के लिए बधाई के साथ कहूँगा कि मतले से 'गांधी' हटा दीजिए भाई जी ! 'गांधी' का नाम मोदी या आज के किसी भी नेता के साथ बिलकुल उचित नही है ! आपका मतला अप्रत्यक्ष रूप से गांधी और मोदी में तुलनात्मकता पैदा कर रहा है ! आशा है मै स्पष्ट कर पाया ! कुछ अशिष्ट लगे तो क्षमा ! सादर !
बहुत बहुत धन्यवाद Sarita Bhatia जी
तह-ए-दिल से शुक्रगुज़ार हूँ MAHIMA SHREE जी
बहुत बहुत शुक्रिया वीनस जी। आप के शब्द महत्वपूर्ण हैं।
बहुत बहुत धन्यवाद Kewal Prasad जी
तह-ए-दिल से शुक्रगुज़ार हूँ Abhinav Arun जी, कि आपकी पारख़ी नज़रों को ग़ज़ल पसंद आई।
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