बह्र : १२२२ १२२२ १२२२ १२२२
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न गाँधी से न मोदी से न खाकी से न खादी से
वतन की भूख मिटती है तो होरी की किसानी से
ये फल दागी हैं मैं बोला तो फलवाले का उत्तर था
मियाँ इस देश में सरकार तक चलती है दागी से
ख़ुदा के नाम पर जो जान देगा स्वर्ग जायेगा
ये सुनकर मार दो जल्दी कहा सबने शिकारी से
ये रेखा है गरीबी की जहाजों से नहीं दिखती
जमीं पर देख लोगे पूछकर अंधे भिखारी से
चुने जिसको, सहे उसके सितम चुपचाप ये ‘सज्जन’
जमाने तंग आया मैं तेरी आशिक मिजाजी से
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(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
बहुत बहुत धन्यवाद बसंत नेमा जी
बहुत बहुत धन्यवाद Sulabh Agnihotri जी
बहुत बहुत शुक्रिया aman kumar जी
बहुत बहुत धन्यवाद Ketan Parmar जी
बहुत बहुत शुक्रिया विवेक मिश्र जी
बहुत बहुत धन्यवाद, giriraj bhandari जी
तह-ए-दिल से शुक्रगुज़ार हूँ AVINASH S BAGDE जी।
बहुत बढ़िया आदरणीय बधाई स्वीकार करें
न गाँधी से न मोदी से न खाकी से न खादी से
वतन की भूख मिटती है तो होरी की किसानी से....
ये रेखा है गरीबी की जहाजों से नहीं दिखती
जमीं पर देख लोगे पूछकर अंधे भिखारी से.....बेहतरीन प्रस्तुति आदरणीय ..बधाई स्वीकार करें
बहुत खूब भाई अच्छे अशआर हुए ...
मतला में अच्छा कंट्रास्ट आया है
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