अपनी इस ग़ज़ल के साथ सभी को स्वतंत्रता दिवस की बधाई देता हूँ
आये लौट आज़ादी आज अपनी जवानी में ।
के फहरा दो तिरंगा फिर हवाओं की रवानी में ।
उड़ा दो फिर वही बादल आसमाँ में गुलालों के ,
गुलाबी रंग मिल जाए आज फिर आसमानी में ।
हिमालय की पनाहों में शहीदों को सलामी दे ,
कोई तो गीत गूँजेगा आज गंगा के पानी में ।
बनायें उनके सपनों का चलो आज़ाद भारत हम ,
जिन्होंने ख्वाब देखा था ये अपनी जिंदगानी में ।
आँखों में नमी भरकर लिए मुस्कान होंठो पर ,
चलो कुछ देर बैठे हम फिर उनकी मेजबानी में ।
मौलिक व अप्रकाशित
नीरज
Comment
शब्दों में ओज और ऊर्जा की जितनी आवश्यकता आज है उतनी स्वतंत्र भारत के इतिहास में कभी नहीं रही थी.
पहले दुश्मन भौतिक रूप से दिखता था, तो दीखता भी था. अब दिखता तो अवश्य है, किन्तु दीखता नहीं.
आपकी रचना प्रवाह में होने की दशा को प्राप्त करना चाहती है. जबकि आपने इसके अरमानों पर पानी फेरा हुआ है. रचना को कृपया उसका हक दें. पंक्तियों में १२२२ १२२२ १२२२ १२२२ की मात्रिकता को निभायें, फिर मज़ा देखिये.
शुभेच्छाएँ
आदरणीय आशुतोष मिश्रा जी बहुत बहुत अनुग्रह आपका ।
आदरणीय ब्रिजेश जी बहुत बहुत आभार
कोशिश करूंगा की आगे से बहार भी लिख दूँ ।
बहुत बहुत हार्दिक आभार जीतेन्द्र भाई ।
बेहतरीन भाव ..शहीदों की मेजवानी हमारा परम कर्तव्य है ..एक से बढ़कर एक लाजबाब शेर ...सक्षम हैं आपके भाव को पाठकों तक पहुचाने में ..सादर बधाई के साथ
बहुत ही सुन्दर भाव लिए है आपकी यह रचना। गज़ल के साथ उसकी बहर का जिक्र अवश्य किया करें जिससे कि पाठक शिल्प पर भी ध्यान दे सके। गेय रचना लिखते समय भाव के साथ साथ उसका शिल्प भी महत्वपूर्ण होता है।
आपके इस प्रयास पर आपको हार्दिक बधाई!
उड़ा दो फिर वही बादल आसमाँ में गुलालों के ,
गुलाबी रंग मिल जाए आज फिर आसमानी में ।..........बहुत ही सुंदर भाव
बहुत बहुत बधाई आदरणीय नीरज जी
आदरणीया अन्नपूर्णा जी आपका बहुत बहुत
हार्दिक शुक्रिया ,
आप जादू की बात करती हैं पर सारा जादू तो परमात्मा
का रहता है हम कैसे जीते हैं कैसे बोलते हैं
कैसे देखते हैं कैसे सोचते हैं ये सब अपने आप
में एक बहुत बड़ा जादू है ,
और कविता उसकी देन है कोई भी कविता देख कर
हमे ये ख़याल आ जाता है कैसे बन गयी ये
इतनी सुन्दर कविता , ज़रूर वो हमे जादू जैसा लगता है
पर अगर हम खुद भी उसका एक करिश्मा हैं
उसका कोई जादू हैं
हम क्यों हैं कब तक हैं कैसे हैं हमे नही पता फिर भी हम हैं
इस से बड़ा चमत्कार और क्या होगा ।
_/\_प्रणाम ।
भाई विजय जी आपका बहुत बहुत अनुग्रह
आप जो विश्लेषण कर गए उसका
तो पता मुझे भी नही था ।
बहुत बहुत धन्यवाद बहुत बहुत आभार
सुमित भाई ।
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