For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

प्यार में उनके जो हम [ग़ज़ल ]

प्यार में उनके जो हम सब लुटाने में रहे ।
फिर किसी काबिल नही हम ज़माने में रहे ।

दर्द को बदनाम करना अपनी फितरत में न था ,
तनहा रोये महफ़िलों में मुस्कराने में रहे ।

चोट देने का तरीका ना हमे आया कभी ,
हम हमेशा से ही आगे चोट खाने में रहे ।

पूछो ना मजबूरियों के क्या सितम हमने सहे ,
याद वो ही कर गये जो भुलाने में रहे ।

वो वफ़ा कसमें वो सारी और वादे प्यार के ,
तोड़ने में वो रहे और हम निभाने में रहे ।

ज़िन्दगी के दरमियाँ कुछ और तो गुज़रा नही ,
बस ये कुछ किस्से हैं जो अपने फ़साने में रहे ।

मौलिक व अप्रकाशित
नीरज

Views: 611

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 26, 2013 at 2:25pm

आपने इस प्रस्तुति को ग़ज़ल कर चिह्नित न किया होता तो बहुत संभव था हम कुछ न कहते और आगे बढ़ जाते.

किसी को कुछ नाम मिला है और उस नाम की सार्थकता परिभाषित भी हो चुकी है, तो फिर उस सार्थकता से खेलना अनुचित ही नहीं अपराध है. मित्रवर, आप ग़ज़ल को ग़ज़ल ही रहने दें. आवश्यक नहीं कि ग़ज़ल को खिजलाने वालों में आप भी शामिल हों.

एक अपेक्षा है, इसलिए मेरा आपसे निवेदन है. वर्ना संप्रेषण को संयत करने के आप मुखर विरोधी हैं, यह मैं जानता हूँ. 

शुभेच्छाएँ

Comment by Neeraj Nishchal on August 19, 2013 at 11:01pm

आदरणीय जीतेन्द्र भाई आपका बहुत बहुत
हार्दिक आभार ।

Comment by Neeraj Nishchal on August 19, 2013 at 10:59pm

आदरणीय राज भाई आपका बहुत बहुत आभार ।

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on August 18, 2013 at 8:18pm

सुंदर गजल प्रस्तुति पर, बधाई आदरणीय नीरज जी

Comment by राज़ नवादवी on August 18, 2013 at 11:55am

'प्यार में उनके जो हम सब लुटाने में रहे ।
फिर किसी काबिल नही हम ज़माने में रहे ।

दर्द को बदनाम करना अपनी फितरत में न था ,
तनहा रोये महफ़िलों में मुस्कराने में रहे ।'

अच्छे अशआर हैं, बधाई हो!

Comment by Neeraj Nishchal on August 17, 2013 at 7:04pm

बहुत बहुत हार्दिक आभार आ0 बसंत नेमा जी |

Comment by Neeraj Nishchal on August 17, 2013 at 7:03pm

बहुत बहुत आभार श्याम नारायण वर्मा जी ।

Comment by Neeraj Nishchal on August 17, 2013 at 7:02pm

बहुत बहुत अनुग्रह गिरिराज भंडारी जी ।

Comment by बसंत नेमा on August 17, 2013 at 3:01pm

आ0 नीरज जी बहुत ही सुन्दर! हार्दिक बधाई शुभकामनाये

Comment by Shyam Narain Verma on August 17, 2013 at 12:14pm
बहुत ही सुन्दर! हार्दिक बधाई आपको!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Monday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। पति-पत्नी संबंधों में यकायक तनाव आने और कोर्ट-कचहरी तक जाकर‌ वापस सकारात्मक…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब। सोशल मीडियाई मित्रता के चलन के एक पहलू को उजागर करती सांकेतिक तंजदार रचना हेतु हार्दिक बधाई…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार।‌ रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर रचना के संदेश पर समीक्षात्मक टिप्पणी और…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब।‌ रचना पटल पर समय देकर रचना के मर्म पर समीक्षात्मक टिप्पणी और प्रोत्साहन हेतु हार्दिक…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, आपकी लघु कथा हम भारतीयों की विदेश में रहने वालों के प्रति जो…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मनन कुमार जी, आपने इतनी संक्षेप में बात को प्रसतुत कर सारी कहानी बता दी। इसे कहते हे बात…"
Sunday
AMAN SINHA and रौशन जसवाल विक्षिप्‍त are now friends
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मिथलेश वामनकर जी, प्रेत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय Dayaram Methani जी, लघुकथा का बहुत बढ़िया प्रयास हुआ है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"क्या बात है! ये लघुकथा तो सीधी सादी लगती है, लेकिन अंदर का 'चटाक' इतना जोरदार है कि कान…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service