अंतर मन क्रंदन से
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व्यर्थ लादे बंधन से
अंतर मन क्रंदन से
टूटा जो मन भरोष
जीवंत हुआ जो रोष
तो भी क्या कुछ होगा ?
आशा के मर्दन से
वादों के भंजन से
अलसाया होश जोश
जानेंगे किसका दोष
तो भी क्या कुछ होगा ?
दोषों के मंडन से
साक्ष्यों के खंडन से
उपजेगा स्व,जय घोष
कम पड़े जो शब्द कोश
तो भी क्या कुछ होगा ?
अर्चन अभिनंदन से
शीतल हो चन्दन से
चल कर के कोस कोस
कम होता फिर भी तोष
तो भी क्या कुछ होगा ?
भक्त -प्रेम बंधन से
अवतारी साधन से
करने जब पाल- पोष
स्वयं आयें आशुतोष
तब कुछ निश्चित होगा !!
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गिरिराज भंडारी
मौलिक एवँ अप्रकाशित
Comment
आदरणीय सौरभ भाई , गीत आपको पसन्द आया , मेहनत सफल हुई , उत्साह वर्धन के लिये हार्दिक आभार !!
वाह !
बाह्यकरण की लाचार पहुँच पर सुन्दर भावाभिव्यक्ति हुई है, आदरणीय गिरिराज जी.
हार्दिक शुभकामनाएँ
सफल प्रयास-
खूबसूरत रचना-
आभार आदरणीय-
सुंदर प्रस्तुति ..सादर बधाई
बहुत बहुत शुक्रिया , सुरेन्द्र भाई !!
बहुत सुन्दर. प्रशंसा में
कम पड़े जो शब्द कोश ... तो भी क्या! गंभीर भावों का सुन्दर संयोजन. बधाई.
बहुत बहुत आभार , आदरणीया आन्नपूर्णा जी !!
आदरणीय गिरिराज भण्डारी जी बहुत ही सुंदरता से भावभिव्यक्ति हुई है अनुपम रचना , बधाई ।
सुमित भाई , बहुत बहुत धन्यवाद आपको , आभार आपका !!
श्याम भाई , हार्दिक आभार आपका !!
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