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अंतर मन क्रंदन से

***************

व्यर्थ लादे बंधन से

अंतर मन क्रंदन से

       टूटा जो मन भरोष

       जीवंत हुआ जो रोष

              तो भी क्या कुछ होगा ?

 

आशा के मर्दन से

वादों के भंजन से

        अलसाया होश जोश

        जानेंगे किसका दोष   

              तो भी क्या कुछ होगा ?

 

दोषों के मंडन से

साक्ष्यों के खंडन से  

         उपजेगा स्व,जय घोष

         कम पड़े जो शब्द कोश      

               तो भी क्या कुछ होगा   ?

 

अर्चन अभिनंदन से

शीतल हो चन्दन से         

       चल कर के कोस कोस

       कम होता फिर भी तोष

               तो भी क्या कुछ होगा ?

                  

भक्त -प्रेम बंधन से

अवतारी साधन से 

     करने जब पाल- पोष        

     स्वयं आयें आशुतोष

 

           तब कुछ निश्चित होगा   !!     

  

              ********

            गिरिराज भंडारी  

         मौलिक एवँ अप्रकाशित

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Comment by Shyam Narain Verma on August 17, 2013 at 12:07pm
बहुत ही सुन्दर! हार्दिक बधाई आपको!

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 17, 2013 at 12:05pm

वन्दना जी,  आपका बहुत बहुत शुक्रिया !!!!

Comment by Vindu Babu on August 17, 2013 at 10:11am
इस आकर्षक स्वरुप में प्रस्तुत गहन रचना के लिए आपको ढेरों बधाई आदरणीय!
Comment by Sumit Naithani on August 17, 2013 at 9:34am

sunder post... badhai swikar kare


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 17, 2013 at 8:56am

आदरणीय माथुर जी,आपका बहुत बहुत धन्यवाद !!

Comment by D P Mathur on August 17, 2013 at 7:06am

आदरणीय सुन्दर गीत के लिए बधाई !


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 17, 2013 at 6:13am

आदरणीय , गीत स्वीकर करने के लिये आपका आभार !!

Comment by vijay nikore on August 17, 2013 at 5:12am

वन्दे । सारगर्भित रचना का रसास्वादन कराने हेतु धन्यवाद, आदरणीय गिरिराज जी।

सादर,

विजय निकोर

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