घर के नौकर छोटू ने नेता जी को सूचना दी, "मालिक मालिक, कुछ लोग आप से मिलने आए हैं "
"तुम उन लोगो को बरामदे मे बिठाओ, शरबत-पानी पिलाओ, मैं तैयार होकर आता हूँ "
नेता जी तैयार होकर निकलने ही वाले थे कि उनकी नज़र छोटू पर पड़ी, "अरे.. ये स्टील के गिलासों में क्या लेकर जा रहा है, रे.. ! "
"मालिक शरबत है, आपने ही कहा था न !"
"पगलाया है का..? " नेता जी उसपर गरजे, "शरबत स्टील के गिलासों मे क्यों लेकर जा रहा है ? दिखता नहीं, वो लोग दूसरे धर्म के हैं ?.. वहाँ आलमारी में शीशे के गिलास पड़ें होंगे, ले जा उस में.. . "
Comment
गणेश भाई , हमारे देश की ज्वलंत समस्या पर करारा और सटीक व्यंग इस लघु कथा से आपने किया !! बधाई !!
भाई जी
खुशी इस बात की भी है कि आपने अपने लिए एक केन्द्रीय विधा चुन ली है और शानदार ढंग से लघुकथा के फार्मेट को आत्मसात कर लिया है
अब आपकी लघुकथाओं का इंतज़ार रहता है ...
कभी कहानी पर भी कलम आजमाईश कीजिये ....
कहानियों की अपनी दुनिया है और पुख्ता पहचान कहानियों में ही है
वीनस भाई, इस कथा से आप जुड़कर टिप्पणी दिया यही लघुकथा की सफलता है, उत्साहवर्धन और सराहना हेतु बहुत बहुत आभार |
विवेक भाई, आपकी उत्साहवर्धन करती टिप्पणी किसी पुरस्कार से कम नही है, ऐसा लगा जैसे लेखन कर्म सफल हो गया, बहुत बहुत आभार, नेह छोह बना रहे :-)
आदरणीया गीतिका जी प्रथम टिप्पणी से आपने उत्साहवर्धन किया, बहुत बहुत आभार ।
गणेश भाई बहुत सटीक और जरूरी मुद्दा उठाया है
लघु कथा के हवाले से आप बधाई के पात्र है
एक घटना याद हो आई .. मैंने एक बार एक पंडित जी को शीशे की गिलास से शरबत दिया, वो गिलास देख कर बिदकने लगे .. मैंने कहा पंडित जी एकदम साफ़ और नया गिलास है ... वो कहें ,,,, हम कोई मुल्ला हैं का ?
उफ्फ्फ मैंने अपना माथा पीट लिया ...
ये कथा सभी का भोगा हुआ सच है
दरअस्ल यह लघुकथा नहीं, भोगा हुआ यथार्थ है, जिसे पढ़कर 'वाह' नहीं 'आह' निकलती है. जातिवाद और धर्मवाद जैसी बीमारियाँ लोगों के भीतर जाने कितनी सदियों से रची-बसी हैं. मुझे तो समझ ही नहीं आता कि आखिर किस आधार पर भारत को 'धर्मनिरपेक्ष देश' कहा जाता है? बहुत गहरा वार किया आपने बागी भाई.
अब समय आ गया है कि आपको "लघु कथा विशेषज्ञ" की डिग्री दे दी जाए. :-)
आदरणीय बागी जी!
क्या बात है, बहुत ही चुटीले ढंग से अपने दिया तले अँधेरा दिखला दिया। लघुकथा विधा में आप की महारत वन्दनीय है।
सादर !
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