वंदना......हरिगीतिका
हे! ज्ञान दाती दुःख हरती प्रेम ममता वारती।
यम नियम नियमन दिशा दर्शन गगन गुरूता धारती।।
तुम सर्व हो तुम गर्व हो तुम आदि गंगा गामिनी।
रति सौम्य सागर सती आगर मोक्ष वरदं दायिनी।।1
रघुवीर पूजें कृष्ण कूंजे शक्ति दुर्गा दामिनी।
अभिमान ऐसा क्लेष जैसा पाप शापं नाशिनी।।
अरि नष्ट करती मित्र बनती हाथ सिर पर फेरती।
सुख सार भरणी कष्ट हरणी तोष निश-दिन टेरती।।2
मैं मूर्ख जातं आत्म विमुखं शोक दारूण गम्यता।
तू रक्ष माता शरण दाता दोष वाणी क्षम्यता।।
शिव शक्ति शानं रक्त पानं दुष्ट दलनं काल सी।
मन शांति निर्मल भूमि उर्मिल बाल रक्षक मात सी।।3
पर प्रीति प्रियसी पर्व प्रेरक प्रेम पावन दीप सी।
तन तीर तरूणी तीक्ष्ण तेवर तमस-तम तुम जीत सी।।
जब जयति जय जय जाप जपता जंग जीवन जीतता।
कर कर्म करूणा क्रोध कल्मष काल काटहि तीव्रता।।4
के0पी0सत्यम/मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आ0 प्राची मैम जी, सादर प्रणाम! जी, कुछ जल्दीबाजी में चूक हो गयी! जी मैम, सही कर लूंगा। आपके स्नेह, मार्गदर्शन और उत्साहवर्धन के लिए आपका तहेदिल से बहुत-बहुत आभार। सादर,
आ0 आशीष नैथानी भांई जी, सादर प्रणाम! आपके स्नेह और उत्साहवर्धन के लिए आपका तहेदिल से बहुत-बहुत आभार। सादर,
आ0 बृजेश भांई जी, सादर प्रणाम! आपके स्नेह और उत्साहवर्धन के लिए आपका तहेदिल से बहुत-बहुत आभार। सादर,
आ0 अरून अनन्त भांई जी, सादर प्रणाम! आपके स्नेह और उत्साहवर्धन के लिए आपका तहेदिल से बहुत-बहुत आभार। सादर,
आ0 सुरेन्द्र भ्रमर जी, सादर प्रणाम! आपके स्नेह और उत्साहवर्धन के लिए आपका तहेदिल से बहुत-बहुत आभार। सादर,
आ0 अन्नपूर्णा जी, सादर प्रणाम! आपके स्नेह और उत्साहवर्धन के लिए आपका तहेदिल से बहुत-बहुत आभार। सादर,
आ0 विनीता जी, सादर प्रणाम! आपके स्नेह और उत्साहवर्धन के लिए आपका तहेदिल से बहुत-बहुत आभार। सादर,
बहुत खूबसूरत हरिगीतिका छंद लिखा है आ० केवल प्रसाद जी
शक्ति स्वरूपा के चरणों में समर्पित इस वन्दना के लिए आपको हृदय तल से बहुत बहुत बधाई
रति सौम्य सा/ गर सती आ/ गर मोक्ष वर/ दं दायिनी................... रेखांकित अंश में सती शब्द शिल्प के तौर पर सही नहीं है ... बारहवीं मात्रा लघु होनी चाहिये पर यहाँ दीर्घ हो रही है
सुन्दर वंदना.... बधाई भाई केवल प्रसाद जी !!!
आदरणीय केवल भाई, वाह! बहुत ही सुन्दर वंदना! वृत्यानुप्रास का सयास प्रयोग बहुत रूचिकर लगा।
इस रचना पर आपको हार्दिक बधाई!
सादर!
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