!!! पिया के घर चली रजनी !!!
गजल बह्र- 1 2 2 2, 1 2 2 2
सुहानी रात की रजनी,
सुमन सुख बेल सी रजनी।
बना है चांद दूल्हा जब,
सजी दुल्हन तभी रजनी।
चली बारात तारों की,
मगन आकाश सी रजनी।
करे परछन यहां आभा,
वहां सकुचा रही रजनी।
हवन आदित्य में पूरे,
किए फेरे जगी रजनी।
विदाई कर रहीं किरनें,
सिमट कर रो पड़ी रजनी।
किरन-आभा मिली जैसे,
फफक कर चीखती रजनी।
हुआ सावन झरे आंसू,
बिखर शबनम बनी रजनी।
उठी डोली, सखीं रोतीं।
पिया के घर चली रजनी।।
के0पी0सत्यम/मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आ0 सौरभ सर जी, सादर प्रणाम! आपके अपार स्नेह और आशीष वचन हेतु आपका बहुत-बहुत हार्दिक आभार। जी सर, आपके अपेक्षाओं के अनुसार मेरा सद्प्रयास जारी रहेगा। सादर,
केवल प्रसादजी... आपकी प्रस्तुति कई भाव-रचनाओं पर भारी है. आपकी संवेदना से यही अपेक्षित है, भाई.
दिल से ढेर सारी दाद व दुआएँ लीजिये.
बहुतखूब
आ0 मंजरी दी जी, सादर प्रणाम! आपके स्नेह और उत्साहवर्धन के लिए आपका तहेदिल से बहुत-बहुत आभार। सादर,
हवन आदित्य में पूरे,
किए फेरे जगी रजनी।
विदाई कर रहीं किरनें,
सिमट कर रो पड़ी रजनी। रज्नी का क्या मार्मिक चित्रण किया है आदरणीय केवल प्रसाद जी आपने , बहुत सुन्देर
आ0 अमन भाई जी, आपके स्नेह और उत्साहवर्धन हेतु आपका तहेदिल से बहुत बहुत आभार। सादर
अति सुंदर.....
आ0 जितेन्द्र भाई जी, आपके स्नेह, और उत्साहवर्धन हेतु आपका हृदयतल से बहुत बहुत आभार। सादर,
आ0 अभिनव अरून भाई जी, आपके स्नेह, समर्थन और उत्साहवर्धन हेतु आपका हृदयतल से बहुत बहुत आभार। सादर,
आ0 अरून अनन्त भाई जी, आपके स्नेह और उत्साहवर्धन हेतु आपका हृदयतल से बहुत बहुत आभार। सादर,
आ0 भण्डारी भाई जी, आपके स्नेह और उत्साहवर्धन हेतु आपका हृदयतल से बहुत बहुत आभार। सादर,
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