अकथ्य व्यथा
अरक्षित अंतरित भावनाओं को अगोरती,
क्षुब्ध अनासक्त अनुभवों से अनुबध्द,
फूलों के हार-सी सुकुमार
मेरी कविता, तुम इतनी उदास क्यूँ हो ?
पँक्ति-पँक्ति में संतप्त, कुछ टटोलती,
विग्रहित शिशु-सी रुआँसी,
बगल में ज्यों टूटे खिलोने-से
किसी पुराने रिश्ते को थामे,
मेरे क्षत-विक्षत शब्दों में तुम
इतनी जागती रातों में क्या ढूँढती हो ?
अथाह सागर के दूरतम छोर तक जा कर
प्यासी, तुम खाली हाथ लौट आती हो,
कुछ कहते-कहते अकस्मात, भावशून्य,
नि:शब्द हो जाती हो, और उसी क्षण
अरगनी पर लटक रहे गीले कपड़े-सी
तुम्हारी असह पीड़ा बूँद-बूँद टपकती
मुझसे सही नहीं जाती, और मैं ....
तुम्हारे संग इन शब्दों मे रो देता हूँ ।
तुम्हारी अकथ्य व्यथा में निहित पीड़ा
निरन्तर निचुड़ने के बाद भी
बहुत बाकी रह जाती है ।
विरहिणी के वियोग-सी तुम्हारी पुकार
मैं सुनता हूँ असहाय, छलनी हो जाता हूँ,
अनिर्णीत शब्द, अभिव्यक्ति विहीन
निढाल गिर जाते हैं
और मैं उठा कर उनको बटोर नहीं पाता ।
हवाओं की अदम्य गति
उड़ती रेत की तरह
गिरे अबोध शब्दों को कहाँ से कहाँ
पटक-पटक आती है
और तुम तड़पती हो उस माँ की तरह
जो जलती आग की लपटों में एक संग
कितने बच्चों को खो देती है,
और मैं इस पर भी मूर्ख-सा खड़ा,स्तब्ध
पूछ बैठता हूँ तुमसे नादान-सा ...
"मेरी कविता, तुम इतनी उदास क्यूँ हो ? "
--------
-- विजय निकोर
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
आदरणीया मंजरी जी:
रचना की सराहना के लिए धन्यवाद और हार्दिक आभार।
सादर,
वि्जय निकोर
आदरणीया विनीता जी:
//बहुत ही सशक्त, अद्भुत तथा सुंदर अभिव्यक्ति.//
इतनी सारी सराहना के लिए आभारी हूँ, आदरणीया।
सादर,
विजय निकोर
सराहना के लिए हार्दिक आभार, आदरणीय सौरभ भाई।
सादर,
विजय निकोर
हार्दिक धन्यवाद, आदरणीया प्राची जी।
आदरणीय आशीष जी:
//उम्दा पंक्तियाँ और बेहतरीन रचना आदरणीय |//
सराहना के लिए धन्यवाद, आदरणीय।
विजय निकोर
आदरणीय बृजेश भाई:
//मन की व्यथा, कविता का मर्म, को इससे बेहतर क्या शब्द मिल सकते हैं। निःशब्द कर दिया!//
आपका आभार शत-शत । माँ शारदा की प्रेरणा से कुछ लिख लेता हूँ।
स्नेह बनाए रखें।
सादर,
विजय निकोर
आदरणीय अरून शर्मा जी:
//अहा अहा !!!! निःशब्द कर दिया आपने आदरणीय कथ्य शिल्प भाव बेहद गहन हैं कई बार पढ़ता रहा, बेहद असरदार प्रस्तुति आदरणीय हृदयतल से भूरि भूरि बधाई स्वीकारें.//
आपसे इतना मान मिलने पर मैं कुछ संकोच में हूँ... कि भविष्य में अपेक्षा पर पूरा उतर सकूंगा कि नहीं।
हाँ कोशिश तो जारी रहेगी। मित्र, आपका हार्दिक आभार।
सादर,
विजय निकोर
वाह ! जवाब नहीं.. .
बहुत खूब, आदरणीय.
आदरणीय राज नवादवि जी:
इस रचना को "like" करने के लिए आभार।
सादर,
विजय निकोर
आदरणीया अन्नपूर्णा जी:
// बहुत बढ़िया भाव पूर्ण कविता के लिए आपको हार्दिक बधाई//
कविता के भावों के अनुमोदन हेतु धन्यवाद और आभार, आदरणीया।
सादर,
विजय निकोर
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