बह्र : मफऊलु फायलातु मफाईलु फायलुन (221 2121 1221 212)
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चंदा स्वयं हो चोर तो जूता निकालिये
सूरज करे न भोर तो जूता निकालिये
वेतन है ठीक साब का भत्ते भी ठीक हैं
फिर भी हों घूसखोर तो जूता निकालिये
देने में ढील कोई बुराई नहीं मगर
कर काटती हो डोर तो जूता निकालिये
जिनको चुना है आपने करने के लिए काम
करते हों सिर्फ़ शोर तो जूता निकालिये
हड़ताल, शांतिपूर्ण प्रदर्शन, जूलूस तक
कोई चले न जोर तो जूता निकालिये
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(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
बहुत बहुत धन्यवाद अरुन शर्मा 'अनन्त' जी
तह-ए-दिल से शुक्रगुज़ार हूँ Dr Ashutosh Mishra जी
बहुत बहुत शुक्रिया Ramesh kumar chauhan जी
बहुत बहुत धन्यवाद Ramesh kumar chauhan जी
बहुत बहुत धन्यवाद mrs manjari pandey जी
आदरणीय धर्मेन्द्र जी, लगता है वर्तमान समस्याओं से निपटने का एक मूल मन्त्र आपने पा लिया है. बढिया. आनन्ददायक .
यथार्थ पर शब्दों का प्रयोग लुभावना लगा सादर बधाई ।
आदरनीय धर्मेन्द्र जी ..इस जूते निकालने का भी जवाब नएहीं ..वर्तमान परिदृश्य में आपकी ये रचना समस्या निदान का मूल मंत्र हो सकती है ..सादर बधाई के साथ
वाह धारदार ग़ज़ल आदरणीय क्या कहने यह तेवर अपनाना ही पड़ेगा तभी जाकर कुछ काम बनेगा दिल से बधाई स्वीकारें इस शानदार ग़ज़ल पर.
वेतन है ठीक साब का भत्ते भी ठीक हैं
फिर भी हों घूसखोर तो जूता निकालिये///
वाह क्या कहने आदरणीय बधाई स्वीकारें.
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