बह्र : मुस्तफ़्फैलुन मुस्तफ़्फैलुन मुस्तफ़्फैलुन फा
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छोटे छोटे घर जब हमसे लेता है बाजार
बनता बड़े मकानों का विक्रेता है बाजार
इसका रोना इसका गाना सब कुछ नकली है
ध्यान रहे सबसे अच्छा अभिनेता है बाजार
मुर्गी को देता कुछ दाने जिनके बदले में
सारे के सारे अंडे ले लेता है बाजार
कैसे भी हो इसको सिर्फ़ लाभ से मतलब है
जिसको चुनते पूँजीपति वो नेता है बाजार
खून पसीने से अर्जित पैसो के बदले में
सुविधाओं का जहर हमें दे देता है बाजार
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(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
बहुत बहुत शुक्रिया Abhinav Arun जी, स्नेह लगातार बना रहे।
बहुत बहुत शुक्रिया वीनस केसरी जी, इस कदर भी हौसला अफ़जाई न कीजिए कि गुरूर हो जाय :))))। स्नेह बना रहे। और हाँ आपकी बात नोट कर ली गई है अध्येता पर शे’र कहने की कोशिश जारी है।
बहुत बहुत धन्यवाद vijayashree जी
बहुत बहुत शुक्रिया Dr Ashutosh Mishra जी
बहुत बहुत धन्यवाद जितेन्द्र 'गीत' जी
बहुत बहुत शुक्रिया Shyam Narain Verma जी
बहुत बहुत धन्यवाद गिरिराज भंडारी जी
बाज़ार व्यवस्था में सब कुछ तिरोहित हो रहा है ..सभ्यता ..इंसानियत ..रिश्ते ... नाते सबकुछ ...करार प्रहार करती ग़ज़ल ..आ .धर्मेन्द्र जी --
मुर्गी को देता कुछ दाने जिनके बदले में
सारे के सारे अंडे ले लेता है बाजार
बहुत कुछ कहती और सोचने को विवश करती ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत साधुवाद !!
धर्मेन्द्र भाई
मोबाईल में ओबीओ के मुखपृष्ठ पर इस पोस्ट का शीर्षक देख कर ही मैं ९९ % स्पष्ट था कि यह आपकी ग़ज़ल है
आपने अपनी ग़ज़लों के लिए एक अलग कहन विकसित कर ली है जो बहुत अच्छी बात है
आपकी ग़ज़लों में जो चमक है, जो नयापन है इसे अपना पाना ही किसी शाइर के स्थापित होने की निशानी है
जब किसी एक मिसरे से ही शाइर की पहचान स्पष्ट हो जाए तो इससे बड़ी बात और कोई नहीं हो सकती है
इस ग़ज़ल और आपकी लेखनी को सलाम
"अध्येता" काफ़िया पर भी शेर होना चाहिए :)))))))))))
वर्तमान परिस्थिति का सुन्दर वर्णन आदरणीय शानदार ग़ज़ल लाजवाब अशआर ढेरों बधाई स्वीकारें.
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