For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल : सिर्फ़ कचरा है यहाँ आग लगा देते हैं

बह्र : २१२२ ११२२ ११२२ २२

-----------

धर्म की है ये दुकाँ आग लगा देते हैं

सिर्फ़ कचरा है यहाँ आग लगा देते हैं

 

कौम उनकी ही जहाँ में है सभी से बेहतर

जिन्हें होता है गुमाँ आग लगा देते हैं

 

एक दूजे से उलझते हैं शजर जब वन में

हो भले खुद का मकाँ आग लगा देते हैं

 

नाम नेता है मगर काम है माचिस वाला

खोलते जब भी जुबाँ आग लगा देते हैं

 

हुस्न वालों की न पूछो ये समंदर में भी

तैरते हैं तो वहाँ आग लगा देते हैं

 

आप ‘सज्जन’ हैं मियाँ या कोई चकमक पत्थर

जब भी होते हैं रवाँ आग लगा देते हैं

------

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Views: 629

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on September 5, 2013 at 6:59pm

बहुत बहुत शुक्रिया mrs manjari pandey जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on September 5, 2013 at 6:59pm

बहुत बहुत धन्यवाद Kewal Prasad जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on September 5, 2013 at 6:59pm

बहुत बहुत धन्यवाद Abhinav Arun जी। ग़ज़ल में इस तरह कहने का रिवाज़ है सिर्फ़ इसलिए कहा है। स्नेह बनाये रखें।

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on September 5, 2013 at 6:57pm

बहुत बहुत शुक्रिया  vandana जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on September 5, 2013 at 6:56pm

बहुत बहुत शुक्रिया shubhra sharma जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on September 5, 2013 at 6:56pm

बहुत बहुत धन्यवाद गिरिराज भंडारी जी

Comment by mrs manjari pandey on September 3, 2013 at 9:26pm

            

      आदरणीय धर्मेन्द्र जी क्या कहने ...

     

धर्म की है ये दुकाँ आग लगा देते हैं

सिर्फ़ कचरा है यहाँ आग लगा देते हैं   

    

एक दूजे से उलझते हैं शजर जब वन में

हो भले खुद का मकाँ आग लगा देते हैं

 

      

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on September 3, 2013 at 8:10am

आ0 धमेन्द्र भाई जी, सादर प्रणाम! वाह! क्या कहने.---
//नाम नेता है मगर काम है माचिस वाला
खोलते जब भी जुबाँ आग लगा देते हैं

हुस्न वालों की न पूछो ये समंदर में भी
तैरते हैं तो वहाँ आग लगा देते हैं//----.बहुत सुन्दर गजल। हार्दिक बधाई स्वीकार करें, सादर,

Comment by Abhinav Arun on September 3, 2013 at 7:58am

आपकी सभी ग़ज़लों की तरह ये भी सामयिक सशक्त ! आ. श्री धर्मेन्द्र जी - मैं भी बस यही कहूँ... आपकी तारीफ में --


आप ‘सज्जन’ हैं मियाँ या कोई चकमक पत्थर
जब भी होते हैं रवाँ आग लगा देते हैं

                               ..आफ़रींन !

Comment by vandana on September 3, 2013 at 6:56am

एक दूजे से उलझते हैं शजर जब वन में

हो भले खुद का मकाँ आग लगा देते हैं

बहुत बढ़िया ग़ज़ल आदरणीय धर्मेन्द्र जी 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service