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हँसते मौसम यूँ ही आते जाते रहे
गम के मौसम में हम मुस्कुराते रहे
यादें परछाइयाँ बन गयीं आजकल
हमसफ़र हम उन्हें ही बताते रहे
कल तेरा नाम आया था होंठों पे यूँ
जैसे हम गैर पर हक़ जताते रहे
दिल के ज़ख्मों को वो सिल तो देता मगर
हम ही थे जो उसे आजमाते रहे
तल्ख़ बातें ही अब बन गयीं रहनुमाँ
मीठे किस्से हमें बस रुलाते रहे
चल दिये हैं सफ़र में अकेले ही हम
साथ अपने ग़मों को बुलाते रहे
रूठ कर तुम गये सारा जग ले गये
चाँद तारे भी हमको चिढ़ाते रहे
संजू शब्दिता मौलिक व अप्रकाशित
Comment
लाजवाब शब्दिता जी ,पूरी ग़ज़ल समां बाँधने सफल रही है -
तल्ख़ बातें ही अब बन गयीं रहनुमाँ
मीठे किस्से हमें बस रुलाते रहे
bahut shukriya aadarniya amit dubey ji sneh yun hi banayen rakhen
aadarniya nadir khan ji aapka bahut-bahut aabhar
दिल के ज़ख्मों को वो सिल तो देता मगर
हम ही थे जो उसे आजमाते रहे ...
रूठ कर तुम गये सारा जग ले गये
चाँद तारे भी हमको चिढ़ाते रहे ....
बहुत खूब कहा अदरणीय संजू जी .. बधाई
यादें परछाइयाँ बन गयीं आजकल
हमसफ़र हम उसे ही बताते रहे wah wah bahut khoob sanju ji
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