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कि इश्क सुन तिरे हवाले ताज करते हैं

कि इश्क सुन  तिरे हवाले ताज करते हैं
कि प्यार कल भी था तुझी से आज करते हैं

हुकूमतों का शोख़ रंग यह भी है यारों
कि हम जहाँ नहीं दिलों पे राज करते हैं

बहुत लगाव है हमें वतन की मिटटी से
इसी  पे जान दें इसी पे नाज़ करते हैं

नरम दिली नहीं समझते देश के दुश्मन
चलो कि आज हम गरम मिज़ाज करते 

मिरे वतन के फौज़ियों सलाम है मेरा
 तुझी से मान है तुझी पे नाज़ करते हैं 

संजू शब्दिता मौलिक व अप्रकाशित

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Comment

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Comment by sanju shabdita on July 26, 2013 at 11:02am

aadarniya brijesh bhaie aapki itni badi baat padhkar aisa laga jaise mere sapno ko sunahre pankh lag gaye ho.

aapki baat aksharshah satya sabit ho iske liye mai poori koshis karungi..utsahwardhan ke liye aapka hriday se bahut bahut aabhar...aur aap apar prasann hai es baat ki mujhe behad khushi hai....

Comment by बृजेश नीरज on July 22, 2013 at 5:19pm

आदरणीया संजू बहन मैं प्रसन्न हूं। अपार प्रसन्न!

आपकी लेखनी में वो ताकत है जो आपको एक सफल गजलकार बना सके।

मां शारदे का आशीष आप पर बना रहे यही कामना है।
सादर!

Comment by sanju shabdita on July 22, 2013 at 12:28pm

adarniya brijesh ji na chahte huye bhi mujhe phir se comment likhna pad raha hai..jab bhi o.b.o. pe aati hun ak naya comment mera intzar karta rahta hai..apni pratikriya na dun to bhi achchhi bat nahi..aap pahle bhi jikra kar chuke hai ki aapne comment ko delete kar diya tha..par us par maine koi pratikriya nahi di thi,kyonki mai kisi bhi bat ko badhane me vishwas nahi karti..mai manti hu ki aapne delete kar diya hoga par mera sach yah hai ki maine usi comment ko dekhkar apni pratikriya di..tab tak mujhe aapka dusra comment nahi dikha tha..aur yahi such hai tabhi maine apne comment me yah likha tha ki ''apko sirf tere aur mire hi dikhai diye''...yadi maine aapka dusra comment us samay tak dekha hota to mera comment kuchh aur hota...bewazah bat kyun badhti . jaisa ki mai pahle kah chuki hu ki mai aahat thi par aapki naye comment ke bad se nahi hu...aur chat me bhi maine yah bat saaf kar di thi...jis kahe ko maine wapas le liya us par punah comment aane par mujhe pratikriya deni padi..khair ab sab kuchh achchha hai..bade bade shahron me  aisi chhoti- moti baten to hoti rahti hai..lagta hai mai aur aap taknieki shikar ho gaye...sabse jaruri bat yah ki maine aapke kahe ke saar ko bakhoobi samajh liya hai..mai batana chahti hun ki aapke hi comment ki wazah se mai ghazal lekhan me ak seedhi aur chadh gayie hu iske liye mai aapka bahut shukriya bhi ada karna chahti hu..es tarah se aapke comment se bhale hi mujhe chhadik dukh hua ho par uski tulna me prerna apar mili....to hui na fayde ki baat..aise me kadwi baton ka kya kaam?? mai to bahut khush hu ummid hai ki aap bhi prasann honge.....aabhari

Comment by बृजेश नीरज on July 17, 2013 at 5:36pm

 आदरणीया संजू जी, पहली बात तो सीखने सिखाने के क्रम में क्षमा मांगने का कोई काम नहीं। जब हम किसी विषय पर चर्चा कर रहे होते हैं तो सब अपना पक्ष ही रखते हैं। न तो किसी को आहत होना चाहिए और न ही क्षमा मांगनी चाहिए।

रही बात उस कमेन्ट की तो मैं पहले ही स्पष्ट कर चुका हूं कि वह कमेन्ट मैंने तुरन्त डिलीट कर दिया था क्योंकि मुझे स्वयं लगा था कि यह कमेन्ट उचित नहीं है इसीलिए तुरन्त अपने कमेन्ट को संशोधित करके मैंने पोस्ट किया था।

ऐसा कमेन्ट जिस पर कोई प्रत्युत्तर न आया हो और उसे डिलीट कर दिया जाए तो उसका जिक्र बारबार अच्छा नहीं होता। आपको अपनी मेल से उस कमेन्ट की जानकारी हुई होगी।

मैंने पहले भी इस विषय पर अपनी स्थिति स्पष्ट की थी और शायद आपसे चैट में भी मैंने अपना पक्ष रखा था लेकिन उसके बावजूद आप उसका जिक्र बारबार क्यों कर रही हैं यह समझ नहीं आया।

आपने शायद कमेन्ट के शब्दों को तो पकड़ लिया लेकिन उसकी भावना को स्वीकार नहीं किया।

खैर, जो भी हो आप मेरे शब्दों से आहत हुईं इस पर मुझे दुख है।

सादर!

Comment by sanju shabdita on July 17, 2013 at 11:06am

adarniya veenas ji mai adarniya brijesh ji ki delete ki hui tippni se aahat thi,jiske falswaroop ye sari baten samne aayin.mera comment brijesh ji ke usi comment ke anusar hai jisme unhonne bhadd pitne ki baat kahi thi..us comment se mai bahut dmorlize hui thi....brijesh ji ne likha tha ki .....''shabdon ki aisi bhadd pitte es munch par pahli bar dekh raha hun'' es comment ko padhne ke bad mujhe laga maine jaise bahut bada apradh kar diya ho.

meri taraf se jo bhi galtiyan hui wo janboojh kar nahi balki agyantawas hi hui hai. aap sabhi se margdarshan ki apeksha hai .es vishay pe mai pahle bhi mafi mang chuki hu punah mafi mangti hu..ab adarniya brijesh ji se mujhe koi shikayat nahi hai..aasha hai aap bhi mujhe kshma karenge.....

Comment by वीनस केसरी on July 11, 2013 at 2:21am

संजू जी,
सीखने के क्रम में ऐसी बातें और चर्चाएँ ही हमें आगे बढाती हैं ... चर्चा पर इस प्रकार प्रश्न चिन्ह लगाना अनुचित है 
सीखना है तो चर्चा का सार समझना होगा और गलतियों से बचना होगा ...

Comment by sanju shabdita on July 5, 2013 at 6:50pm

आदरणीय सौरभ जी एवं बृजेश जी  बहुत- बहुत  आभार .......

Comment by sanju shabdita on July 5, 2013 at 6:42pm

आदरणीया महिमा जी आपने मेरे भाव को मान दिया आपका बहुत -बहुत शुक्रिया

Comment by बृजेश नीरज on July 5, 2013 at 8:00am

//रही बात शब्दों के 'भद्द पिटने' की//

आदरणीया संजू जी आपने जिस टिप्पणी से शब्द उठाए हैं वह मैंने डिलीट कर दी थी। वह टिप्पणी मेरे द्वारा तुरंत हटा दी गयी थी इसलिए कृपया उस टिप्पणी का उल्लेख न करें। मेरी टिप्पणी का अंतिम प्रारूप आपके सामने है।

मैं हिंदी भाषी हूं और हिंदी भाषा को सम्मान देता हूं। मेरा मानना है कि शब्दों को उनके मूल रूप में ही लिखा जाना चाहिए। ‘कोई’ को ‘कुई’ तो नहीं ही लिखा जाता। इस तरह से शब्दों को विकृत करके लिखा जाना एक नई परम्परा को जन्म देगा। लोग भविष्य में इनका उदाहरण बनाकर अपनी रचनाओं में लिखा करेंगे। तब हिन्दी में एक नई खोज शुरू होगी मात्रा गिराए जाने के अनुसार शब्दों की हिज्जियां और सही शब्द की हिज्जियां। ऐसा तो किसी भाषा में नहीं होता। क्या मात्रा गिराकर उर्दू में हम लिखते हैं?

//इसी मंच पर प्रायः लोग उर्दू शब्दों का प्रयोग तो करते हैं पर लिपि का नहीं।//

मेरी आपत्ति उर्दू शब्दों के प्रयोग को लेकर नहीं है। बेशक आप गजल लिखती हैं तो उर्दू शब्दों का प्रयोग करें लेकिन उन हिज्जियों के साथ जो उच्चारण के हिसाब से हिंदी भाषा में मान्य हैं। हिंदी गजल विधा अपने विकास के दौर में है मात्रा गिराने के अनुसार मान्य हिज्जियों से इतर प्रयोग इस विकास की राह को भटकायेगा ही। यह हमारा आपका दायित्व भी है कि इसको सही राह पर बनाए रखें।

//यह मेरा दुर्भाग्य ही है कि  आपको मेरी ग़ज़ल में सिर्फ तिरे और मिरे ही दिखाई दिये।// 

रही बात सिर्फ ‘मिरे’ और ‘तिरे’ ही दिखने की तो मैंने यह निवेदन किया ही है कि आपकी रचना के भाव बहुत अच्छे हैं। मैंने आपकी रचना की कोई आलोचना नहीं की। आपका लेखन प्रशंसनीय है। यह शब्द यूं भी इसलिए साफ दिखाई दिए क्योंकि आपने शीर्षक में इस शब्द का प्रयोग किया है।

एक निवेदन जरूर करना चाहूंगा कि यहां प्रश्न मेरे सम्मान का नहीं है, भाषा के सम्मान का है। यदि हम लिखते हैं तो यह हमारा दायित्व भी है कि भाषा के स्वरूप के साथ छेड़छाड़ न करें। भाषा को सम्मान देना और उसे आगे ले जाना भी उस भाषा के लेखकों का दायित्व होता है।

आशा है आपने मेरे कहे का उद्देश्य समझा होगा।

सादर!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 5, 2013 at 1:42am

हिन्दी में शब्दों की अक्षरियाँ (हिज्जे) संयत होती हैं. उनमें आवश्यकतानुसार परिवर्तन नही होते. उर्दू के प्रभाव से बह्र आधारित उच्चारण के अनुसार लोग (शाइर) अक्षरियों में मनचाहा परिवर्न करने लगते हैं जबकि ऐसा होना नहीं चाहिये. हिन्दी व्याकरण इसकी अनुमति नहीं देता. जहाँ बह्र के अनुसार मात्रा गिरानी होती है सुधी पाठक समझ लेते हैं और तदनुरूप पढते है. और जिन्हें बह्र की समझ ही नहीं उन्हें कोई बदलाव नहीं दिखता, अतः वे भी निष्प्रभावी रहते हैं.

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