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आज तेरा पयाम आया है
जैसे फिर माहताब आया है

देख लो सज गये दिवारो दर
घर मेरे कोई शाद आया है

अबके हो फैसला मेरे हक़ में
हांथ में इन्तखाब आया है

इल्म की रौशनी जली मुझमें
यूँ लगा आफ़ताब आया है

हो गये लाख़ रंग हसरत के
मेरा जोड़ा शहाब आया है

पयाम = सन्देश, माहताब = चाँद , शाद = ख़ुशी,
इन्तखाब = चुनाव, आफ़ताब = सूरज, शहाब = सुर्ख लाल रंग

अमित कुमार दुबे मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by अमित वागर्थ on August 25, 2013 at 9:21am

adarniya geetika ji aapka hriday se aabhar

Comment by annapurna bajpai on August 24, 2013 at 10:59pm

आदरणीय अमित जी काफी अच्छी गज़ल बन पड़ी है । बहुत बधाई आपको ।  


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 24, 2013 at 10:44pm

अमित भाई , सुन्दर गज़ल हुई है, दिली बधाई -

इल्म की रौशनी जली मुझमें
यूँ लगा आफ़ताब आया है--------- वाह !!

Comment by वेदिका on August 24, 2013 at 7:49pm

अबके हो फैसला मेरे हक़ में
हांथ में इन्तखाब आया है... खूब

गजल तो बढ़िया बन पड़ी है, फिर भी अगर प्रयुक्त कुछ शब्दों के अर्थ समेत प्रस्तुति दे दी जाती है तो हम जैसे अल्प समझ वालों को और अच्छे से समझ में आ जाता है, इससे रचना का प्रभाव और भी बढ़ जाता है !!

शुभकामनाएं !! 

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