212 212 212 212
रात जगता रहा दिन में सोता रहा
चाँद के ही सरीखे से होता रहा
बादलों की हुकूमत हुई चाँद पर
चाँद छुपकर अँधेरों में रोता रहा
उल्टे रस्ते ही जब मुझको भाने लगे
बारी बारी से अपनों को खोता रहा
रस्म मैंने निभायी नहीं है मगर
दिल में रिश्तों को अपने संजोता रहा
जो न मांगा मिला मुझको सौगात में
जिसको चाहा वो मुश्किल से होता रहा
मैंने अपने गले से…
ContinueAdded by अमित वागर्थ on July 10, 2014 at 10:58am — 30 Comments
१२२२ १२२२ १२२
जमाना अब दीवाना हो रहा है
खुदी से ही बेगाना हो रहा है
जला डाला था जिसने घर हमारा
वही अब आशियाना हो रहा है
जो हमने…
ContinueAdded by अमित वागर्थ on May 7, 2014 at 11:00am — 20 Comments
आज मजलूम को सताओगे
बददुआ सात जन्म पाओगे
बह्र ग़ालिब की खूब लिख डालो
दिले-ग़ालिब कहाँ से लाओगे
खुद को भगवान मान बैठेगा
हद से ज्यादा जो सिर झुकाओगे
आज साहब बने हो रैली…
ContinueAdded by अमित वागर्थ on February 21, 2014 at 7:02pm — 15 Comments
२१२२ २१२२ २१२२ २१२
बज़्म थी तारों की उसमें चाँद का पहरा भी था
धूम थी रानाइयों की दिल मेरा तन्हा भी था
इक नदी थी नाव भी थी और था मौसम हसीं
साथ तुम थे बाग़ गुल थे इश्क मस्ताना भी था…
ContinueAdded by अमित वागर्थ on January 8, 2014 at 7:00pm — 35 Comments
2 1 2 2 2 2 1 2
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दफ़्तरों में आराम क्यों
फाइलों में है काम क्यों
सुरमयी सी इक शाम है
फिर उदासी के नाम क्यों
कर गया वो करतूत…
ContinueAdded by अमित वागर्थ on December 7, 2013 at 11:00pm — 11 Comments
1 2 2 1 2 2 1 2 2 1 2 2
समन्दर की लहरों सी है जिन्दगानी
कभी बर्फ गोला कभी बहता पानी
उदासी के बूटे जड़े हैं सभी में
हो तेरी कहानी या मेरी कहानी
बुढ़ापे में होने लगी ताज़पोशी
किसी काम की अब नहीं है जवानी
ये मौजें भी अब मुतमइन सी हैं लगती
नहीं है वो जज्बा नहीं वो रवानी
नये ये नज़ारे बहुत दिलनशीं हैं
मगर मुझको भाती हैं चीज़ें पुरानी
अमित दुबे अंश मौलिक व अप्रकाशित
Added by अमित वागर्थ on September 30, 2013 at 2:00pm — 14 Comments
2 1 2 2 1 2 1 2 2 2
आज तेरा पयाम आया है
जैसे फिर माहताब आया है
देख लो सज गये दिवारो दर
घर मेरे कोई शाद आया है
अबके हो फैसला मेरे हक़ में
हांथ में इन्तखाब आया है
इल्म की रौशनी जली मुझमें
यूँ लगा आफ़ताब आया है
हो गये लाख़ रंग हसरत के
मेरा जोड़ा शहाब आया है
पयाम = सन्देश, माहताब = चाँद , शाद = ख़ुशी,
इन्तखाब = चुनाव, आफ़ताब = सूरज, शहाब = सुर्ख लाल रंग
अमित कुमार दुबे मौलिक व…
Added by अमित वागर्थ on August 24, 2013 at 8:19pm — 14 Comments
Added by अमित वागर्थ on May 25, 2013 at 6:30pm — 8 Comments
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