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ग़ज़ल - बहाने पे बहाना हो रहा है

१२२२    १२२२     १२२

जमाना अब दीवाना हो रहा है

खुदी से ही बेगाना हो रहा है

 

जला डाला था जिसने घर हमारा

वही अब आशियाना हो रहा है

 

जो हमने पूछ ली उनसे हकीकत

बहाने पे बहाना हो रहा है

 

हमारे पास इक गैरत बची थी

उसी पर अब निशाना हो रहा है

 

हमें मजहब में अब वो बांट देगा

सुनो वो कातिलाना हो रहा है

 

मुहब्बत हम भी कर लेते मगर अब

सनम भी शातिराना हो रहा है

 

कहीं पर हो रहा है खेल खूनी

कहीं पर गीत गाना हो रहा है

 

अमित कुमार दुबे मौलिक व अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Dr Ashutosh Mishra on May 14, 2014 at 1:52pm

मुहब्बत हम भी कर लेते मगर अब

सनम भी शातिराना हो रहा है  आदरणीय अमित जी हर शेर उम्दा है ,,इस शेर के लिए बिशेष रूप से बधाई स्वीकार करें सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 14, 2014 at 10:18am

आदरणीय अमित भाई , बहुत अच्छी ग़ज़ल कही है , सभी अशाअर सुन्दर हैं !! दिली बधाइयाँ ।

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on May 12, 2014 at 5:39pm

अच्छे अश’आर हुए हैं अमित जी, दाद कुबूल करें

Comment by अरुन 'अनन्त' on May 12, 2014 at 2:07pm

अमित भाई बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल कही है आपने सभी अशआर बहुत पसंद आये बढ़िया स्वीकारें खासकर इन दो अशआरों पर विशेष तौर से दाद कुबूल फरमाएं.

हमारे पास इक गैरत बची थी

उसी पर अब निशाना हो रहा है.. लाजवाब

 

हमें मजहब में अब वो बांट देगा

सुनो वो कातिलाना हो रहा है... वाह

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on May 12, 2014 at 8:50am

बहुत खुबसूरत गजल आदरणीय अमित जी

हमारे पास इक गैरत बची थी

उसी पर अब निशाना हो रहा है............लाजवाब शेर हुआ

 

मुहब्बत हम भी कर लेते मगर अब

सनम भी शातिराना हो रहा है...........यह तो खूब कहा, दिली बधाई आपको

 

Comment by Krishnasingh Pela on May 11, 2014 at 12:30am

हमें मजहब में अब वो बांट देगा

सुनो वो कातिलाना हो रहा है

शानदार अशअार हैं । हार्दिक बधाइ स्वीकार करें । 

कहीं पर हो रहा है खेल खूनी

कहीं पर गीत गाना हो रहा है  

यह भी लाजबाब है परंतु "हाे रहा है" की पुनरावृति के कारण थाेडा सा कम प्रीतिकर सुनाइ देगा सायद । यदि इसकाे एेसे कहें ताे ...

कहीं उत्कर्ष में है खेल खूनी 

कहीं गाना बजाना हाे रहा है । 

बेहतरीन ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाइ स्वीकार करें । 

Comment by ram shiromani pathak on May 10, 2014 at 7:49pm

वाह खूब सुन्दर ग़ज़ल आदरणीय। ………।  हार्दिक बधाई आपको 

Comment by gumnaam pithoragarhi on May 10, 2014 at 6:42pm

बहुत खूब,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,बधाई

Comment by MAHIMA SHREE on May 8, 2014 at 9:06pm

आदरणीय अमित जी बहुत -२ बधाई लाजवाब ग़ज़ल कही है .. हर शेर उम्दा है .सादर

Comment by नादिर ख़ान on May 8, 2014 at 12:28pm

जो हमने पूछ ली उनसे हकीकत

बहाने पे बहाना हो रहा है

हमारे पास इक गैरत बची थी

उसी पर अब निशाना हो रहा है

आदरणीय अमित जी शानदार गज़ल के लिए मुबारकबाद ..

सुंदर अभिव्यक्ति  सभी शेर उम्दा हैं।

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