!!! बने हम भोर-संध्या से!!!
विभा अब ढूंढ़ती किससे,
पढ़ाएं प्रेम की
पाती!
चपल सी आ गयी आभा,
चमकते शब्द
उपवन से।
पढ़ें पंछी, चहक चिडि़यां
धुनों में
गा रहे भौंरे।
कहे कोयल सुने सविता,
चमक कर
आ गयीं किरनें।
धरा पर छा गई मस्ती,
पवन इठला रही
उड़कर।
सुमन-शबनम मिली खिलकर,
गुलाबों की हसीं
बढ़कर।
बुलाती रोज दिनकर को,
हंसाती खूब
सर्दी में।
तराने ढ़ूढ़ते झरने,
उछलती
कूदती लहरें।
मिली मछली उड़ी तितली,
निशानी मिल
गयी छतरी।
दिशा जब लाल होती है,
थके पंछी
उड़े घर को।
जिया में डर बसा उनका,
ख्यालो में
पढ़े खत को।
कहानी यूं सिखाती है,
रवानी रोज
आती है।
विरहणी रात की रानी,
पिया दिनकर
मिलें दिन में।
रहे समरस सदा हरदम
कभी सुख है
कभी गम है।
लसे लाली कहे माली,
बने हम
भोर-संध्या से।।
के0पी0सत्यम/मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आ0 सौरभ सर जी, आपके अपार स्नेह और आशीष वचन हेतु आपका बहुत-बहुत हार्दिक आभार। सादर,
आ0 नवादवी भाई जी, आपके स्नेह और उत्साहवर्धन हेतु आपका बहुत बहुत हार्दिक आभार। सादर,
आ0 आशीष भाई जी, आपके स्नेह और उत्साहवर्धन हेतु आपका बहुत बहुत हार्दिक आभार। सादर,
भूरि भूरि बधाई भाईजी. अंतर्गेयता ने एकदम से ध्यान खींचा है.. वाह वाह !
शुभम्
बढ़िया और संगीतमय भी. बधाई हो.
बढ़िया प्रवाह पूर्ण रचना है भाई जी....
हार्दिक बधाई इस रचना के लिए !!
आ0 शुभ्रा जी, सादर प्रणाम! प्रस्तुत कविता पर आपकी विशेष टिप्पणी से मेरा मान बढ़ गया । आपके स्नेह और उत्साहवर्धन के लिए आपका हृदयतल से बहुत-बहुत आभार। सादर,
आ0 अरून अनन्त भाई जी, प्रस्तुत कविता पर आपकी विशेष टिप्पणी से मेरा मान बढ़ गया । यह मेरे लिए परम सौभाग्य की बात है। आपके विशेष स्नेह और उत्साहवर्धन के लिए आपका हृदयतल से बहुत-बहुत आभार। सादर,
आ0 शरदिन्दु सर जी, सादर प्रणाम! प्रस्तुत कविता से आपकी यात्रा की थकान दूर हुई। यह मेरे लिए सुखद और परम सौभाग्य की बात है कि मैनें आपको पुनः तरोजाता महसूस कराया। आपके विशेष स्नेह और उत्साहवर्धन के लिए आपका हृदयतल से बहुत-बहुत आभार। सादर,
आ0 बृजेश भाई जी, आपके विशेष स्नेह और उत्साहवर्धन के लिए आपका हृदयतल से बहुत-बहुत आभार। सादर,
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