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लोरी---एक राजस्थानी लघुकथा
फुटपाथ पर जीवन बितानेवाली एक गरीब औरत,भूखे बालक को गोद में लिए बैठी थी.भूखे बालक की हालत बिगड़ती जा रही थी.
थोड़ी दूरी पर,बरसों से जनता को सुंदर,सुंदर,मीठे मीठे सपने दिखने वाले नेताजी भाषण बाँट रहे थे.
भाषण के बीच में बालक रो दिया.माँ ने कह,"चुप,सुन,नेताजी कितनी मीठी लोरी सुना रहें हैं." नेताजी कह रहे थे,"मैं देश से गरीबी-महंगाई मिटा दूंगा.देश फिर से सोने की चिड़िया बन जायेगा,घी दूध की नदियाँ बहेंगी
.कोई भूखा नहीं मरेगा...."
यह सुन कर खुश होती हुई माँ ने सुख समाचार सुनाने के लिए,बालक को झकझोरा.बालक भूख से मर चुका था.
लेखक:श्री लक्ष्मीनारायण रंगा
अनुवाद :रजनी छाबरा

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Comment by Rahul on May 27, 2010 at 6:42pm
Main soch raha tha ki kya hi acchha ho ki ye marmik katha hamare netagan padhen aur kaash ki agar ek bhi neta ka zameer ek baar bhi jage aur vo ek din ke liye bhi apne adhikaron ki bajaye apne kartavyon par dhyan de de, to ....

Par mujhe pata hai ki ye sirf 'KAASH' tak hi simat kar reh jane wala hai... sirf isliye nahin ki ham mein se adhiktar log netaon ko kose to sakte hain par ek kadam agey badhkar unhe replace nahin kar sakte. kya hi acchha hota agar...

Ant mein rachna ke liye aabhaar aur replace shabd ke prayog ke liye khed.
Comment by satish mapatpuri on May 24, 2010 at 4:43pm
थोड़ी दूरी पर,बरसों से जनता को सुंदर,सुंदर,मीठे मीठे सपने दिखने वाले नेताजी भाषण बाँट रहे थे.
भाषण के बीच में बालक रो दिया.माँ ने कह,"चुप,सुन,नेताजी कितनी मीठी लोरी सुना रहें हैं." नेताजी कह रहे थे,"मैं देश से गरीबी-महंगाई मिटा दूंगा.देश फिर से सोने की चिड़िया बन जायेगा,घी दूध की नदियाँ बहेंगी
.कोई भूखा नहीं मरेगा...."रजनी जी, इस बेहतरीन रचना के लिए साधुवाद स्वीकार करें.
Comment by Biresh kumar on May 23, 2010 at 12:08am
.कोई भूखा नहीं मरेगा...."
----------------------------------
apki rachna hai hi aisi ki sach me koi bhi kaviya ka bhuka
bhuka nahi marega....really nice1
Comment by PREETAM TIWARY(PREET) on May 22, 2010 at 11:55pm
bahut hi badhiya aur hridaysparshi rachna hai.......aapka bahut bahut dhanyabaad ise yahan post karne ke liye.......
Comment by Kanchan Pandey on May 22, 2010 at 2:20pm
Rajani didi, bahut hi sambedanshil katha hai, aapney achha kiya yaha likhkar,
Comment by दुष्यंत सेवक on May 22, 2010 at 1:45pm
math diya hai is rachna ne.....aadreya apka hardik abhar itni marmik rachna ko hindi me uplabdh karane ke liye....vakai netao dwara dikhaye jane wale sabzbaag aise hi hote hin...
Comment by rajni chhabra on May 22, 2010 at 10:51am
Ranga ji ki laghu kathaon se main bahut prabhawit hoon aur aksar unhe Hindi or English main translate kertee hoon, socha,aaj aap sb se bhi share keroon

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Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on May 22, 2010 at 10:51am
रजनी दीदी बहुत ही बढ़िया और मन को झकझोर देने वाली लघु कथा आप अनुवादित कर हम सब के लिये पोस्ट की है, बहुत बहुत धन्यबाद ,
Comment by Admin on May 22, 2010 at 10:41am
रजनी जी आपको ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार के तरफ से कोटि कोटि धन्यबाद है, बहुत ही हृदय स्पर्शी लघु कथा श्री लक्ष्मीनारायण रंगा जी ने लिखा है, पढ़ कर सोचने पर मजबूर होना पड़ रहा है कि नेताओ के कथनी और करनी मे कितना फ़र्क है,

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