Added by rajni chhabra
Added by rajni chhabra
यह कविता 10/4/2007 को लिखी थी और आज बहुत भारी मन से आप सब के साथ फिर से शेयर कर रही हूँ/
क्या फूल ,क्या कलियाँ
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फिजाओं के रंग
क्यों होने लगे बदरंग
क्या फूल,क्या कलियाँ
ऐय्याशों के लिए
सभी रंगरलियाँ
किल्क्कारियाँ बन गयी
सिसकारियाँ
अवाक इंसान
अवाक भगवान्
हैवानियत की देख हद
निगाहें दंग ,ज़िंदगी परेशान
घर घरोंदे ,रहें,गुलशन
सब बन जायेंगे…
ContinuePosted on December 18, 2012 at 11:00pm — 1 Comment
Posted on August 15, 2012 at 12:30pm — 3 Comments
मेरे लिए
क्या शहर ,क्या गाँव
जीवन तपती दुपहरी
नहीं ममता की छाँव
गाँव में,भाई को
मेरी देख रख में डाल
माँ जाती ,भोर से
खेती की करने
सार सम्भाल
शहर में,बड़ा भाई
जाता है कारखाने
गृहस्थी का बोझ बंटाने
खुद को काम में खपाने
कच्ची उम्र की मजबूरी
काम पूरा,मजदूरी मिलती अधूरी
हाथ में कलम पकड़ने की उम्र…
Posted on May 1, 2012 at 1:00pm — 14 Comments
Posted on May 4, 2011 at 3:00pm — 2 Comments
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Comment Wall (12 comments)
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आदरणीया रजनी जी जन्म दिन की हार्दिक शुभ कामनाएं ..प्रभु आप के सारे सुखद सपने पूर्ण करें ..जीवन मंगलमय हो .समाज में उजाला फैलता रहे ..भ्रमर ५
मुख्य प्रबंधकEr. Ganesh Jee "Bagi" said…
रजनी जी हमें अपनी दोस्ती से नवाजने का बहुत बहुत शुक्रिया...!! -जूली :-)
मुख्य प्रबंधकEr. Ganesh Jee "Bagi" said…
Thx
मुख्य प्रबंधकEr. Ganesh Jee "Bagi" said…
धन्यबाद सहित आपका अपना ही
ADMIN
OBO
प्रधान संपादकयोगराज प्रभाकर said…
मुख्य प्रबंधकEr. Ganesh Jee "Bagi" said…
Aapka "Open Books" parivar mey hardik abhinandan aur swagat hai, umeed hai ki aap apanee upasthiti aur aashirvad sey ham sabhi ka margdarshan kartee rahyegi,
Dhanyabad sahit,Aapka chhota bhai,
Ganesh jee
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