मेरे लिए
क्या शहर ,क्या गाँव
जीवन तपती दुपहरी
नहीं ममता की छाँव
गाँव में,भाई को
मेरी देख रख में डाल
माँ जाती ,भोर से
खेती की करने
सार सम्भाल
शहर में,बड़ा भाई
जाता है कारखाने
गृहस्थी का बोझ बंटाने
खुद को काम में खपाने
कच्ची उम्र की मजबूरी
काम पूरा,मजदूरी मिलती अधूरी
हाथ में कलम पकड़ने की उम्र में
बनाता है ,कारखाने में बीड़ी
बाल श्रम का यह रोग
पहुँचता जाएगा
पीढ़ी दर पीढ़ी
छोटे भाई की देख रख का
नहीं हैं मलाल
पर मेरे लिए,जाने कब
आयेगा वह साल
जब मैं भी
जा सकूंगी स्कूल
ज़िंदगी की चक्की से
गर दो घंटे भी
फुर्सत पाऊँ
खुद पढूँ ,साथ मैं
छोटे भैया को भी पढाऊँ
कुछ कर गुजरने की चाह
मन में संवारती
छोटे भाई को दुलारती
गीली लकड़ियाँ सुलगाती
रांधती हूँ दाल भात
माँ वापिस आती,थकी हारी
लिए शिथिल गात
दिन भर की थकान से पस्त
सो जाती,बिन किये कोई बात
ममता के दो बोल को तरसता
जीवन मेरा,मेरे जीवन का नाम अभाव
मेरे लिए क्या शहर ,क्या गाँव
जीवन तपती दुपहरी,नहीं ममता की छाँव
Comment
ममता के दो बोल को तरसता
जीवन मेरा,मेरे जीवन का नाम अभाव
मेरे लिए क्या शहर ,क्या गाँव
जीवन तपती दुपहरी,नहीं ममता की छाँव
आदरणीया रजनी जी ..सुन्दर रचना ..काश ऐसा न हो ..बेटियों को भरपूर प्यार मिलना ही चाहिए ..भ्रमर ५
thanx,Gaurav for ur review
ज़िंदगी की चक्की से
गर दो घंटे भी
फुर्सत पाऊँ
खुद पढूँ ,साथ मैं
छोटे भैया को भी पढाऊँ
आदरणीया रजनी जी इस भावपूर्ण लेखन के लिए बधाई
dushyant jee,kavita ke mrm tak pahunchane ke liye abhaar
kushwaha jee,bahut bahut abhaar aapke amuly comment ke liye
आदरेया रजनी जी मजदूर की अवस्था का मार्मिक बखान आपने अपनी कविता में सुन्दर शब्दों के माध्यम से किया है.. बात सीधे मर्म पर चोट करती है.. इस भावपूर्ण लेखन के लिए बधाई व शुभकामनायें स्वीकारें
bacche ki manobhavna, man ki pida ka bahut sundar tarike se prastut karne par badhai.aadarniyaa rajni ji, saadar
shukriya,Chotu Singh ji, main appkee rai se itefaq rkhtee hon
RAJESH KUMAREE JII,TAHE DIL SE SHUKRIYA ,ITNE UMDA COMMENT KE LIYE
Saurabh ji,aapke swaednsheel comment ke liye abhaar
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