बह्र : मुस्तफ़्फैलुन मुस्तफ़्फैलुन मुस्तफ़्फैलुन फा
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छोटे छोटे घर जब हमसे लेता है बाजार
बनता बड़े मकानों का विक्रेता है बाजार
इसका रोना इसका गाना सब कुछ नकली है
ध्यान रहे सबसे अच्छा अभिनेता है बाजार
मुर्गी को देता कुछ दाने जिनके बदले में
सारे के सारे अंडे ले लेता है बाजार
कैसे भी हो इसको सिर्फ़ लाभ से मतलब है
जिसको चुनते पूँजीपति वो नेता है बाजार
खून पसीने से अर्जित पैसो के बदले में
सुविधाओं का जहर हमें दे देता है बाजार
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(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
बाज़ारीकरण पर एक सुंदर वास्तविक अभिव्यक्ति
बधाई स्वीकारें धर्मेन्द्र जी
वर्तमान व्यवस्था को चित्रित करती शानदार ग़ज़ल ..आदरनीय धेर्मेंद्र जी हार्दिक बधाई
कैसे भी हो इसको सिर्फ़ लाभ से मतलब है
जिसको चुनते पूँजीपति वो नेता है बाजार.......सच! स्वार्थ को स्पष्ट करता हुआ शेर
बहुत प्रभावी गजल, बहुत बहुत बधाई आदरणीय धर्मेन्द्र जी
बहुत सुन्दर...बधाई स्वीकार करें ……………… |
धर्मेन्द्र भाई , बाज़ार की वास्तविकता उजागर करती , एक अच्छी गज़ल के लिये बधाई !
खून पसीने से अर्जित पैसो के बदले में
सुविधाओं का जहर हमें दे देता है बाजार !!!
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