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नवगीत: मुहब्बत संजीव 'सलिल

नवगीत:

मुहब्बत

संजीव 'सलिल'
*
दिखाती जमीं पे
है जीते जी
खुदा की है ये
दस्तकारी मुहब्बत...
*
मुहब्बत जो करते,
किसी से न डरते.
भुला सारी दुनिया
दिलवर पे मरते..

न तजते हैं सपने,
बदलते न नपने.
आहें भरें गर-
लगे दिल भी कंपने.
जमाने को दी है
खुदाने ये नेमत...
*
दिलों को मिलाओ,
गुलों को खिलाओ.
सपने न टूटें,
जुगत कुछ भिड़ाओ.

दिलों से मिलें दिल.
कली-गुल रहें खिल.
मिले आँख तो दूर
पायें न मंजिल.
नहीं इससे ज्यादा
'सलिल' है मसर्रत...
***********

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Comment by sanjiv verma 'salil' on December 25, 2010 at 12:58pm
aabhar.

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on December 25, 2010 at 10:02am

न तजते हैं सपने,
बदलते न नपने.
आहें भरें गर-
लगे दिल भी कंपने...

वाह आचार्य जी वाह, बेहतरीन है यह ...

Comment by Bhasker Agrawal on December 24, 2010 at 11:56am
दिलों को मिलाओ,
गुलों को खिलाओ.
सपने न टूटें,
जुगत कुछ भिड़ाओ.....बहुत सही

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