हास्य कॆ,,,,,दॊहॆ :- ---------------------
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करियॆ साजन आज सॆ, सब्जी लाना बन्द ।
दिन-दिन दुर्लभ हॊ रहीं, जैसॆ मात्रिक छंद ॥१॥
परवल पीली पड़ गई, मिर्ची गई सुखाय ।
बहुमत पाया प्याज नॆं,शासन रही चलाय ॥२॥
शपथ ग्रहण मॆंथी करॆ, मंत्री पद की आज ।
आलू कॆ सहयॊग सॆ, सिद्ध हुयॆ सब काज ॥३॥
लौकी कॊ तॊ चाहियॆ, रॆल प्रशासन हाँथ ।
कुँदरू गाजर घॆवड़ा, बावन संसद साथ ॥४॥
पालक खड़ी विपक्ष मॆं, चीखॆ हाँथ उठाय ।
सुनत करॆला सत्र मॆं,सबकी ध्यान लगाय ॥५॥
सूरन की पूरन भईं, सारी आज मुराद ।
कहॆ जीभ कॊ काटकॆ, लॆ लॆ मॆरा स्वाद ॥६॥
गॊभी सॆ इतराइ कै, भिन्डी बॊली बैन ।
आज टमाटर सॆ लड़ॆ, सजनी मॆरॆ नैन ॥७॥
घॊटालॆ कर कर हुआ, कद्दू एलीफ़ॆन्ट ।
इतना मॊटा हॊ गया,छॊटा पड़ता पॆन्ट ॥८॥
खड़ा खॆत मॆं कह रहा, भांटा जॊरॆ हाँथ ।
कालॆ का कॊई नहीं, दॆता जग मॆं साथ ॥९॥
ककड़ी सिमला बरबटी,सबकॆ बढ़ॆ मिज़ाज ।
राम करॆ गिर जाय अब, मँहगाई पर गाज़ ॥१०॥
सब्जी वालॆ सॆ कहॆ, दॆ कर झॊला राम ।
तॊला-तॊला तौल दॆ, सब कुछ तॊलाराम ॥११॥
घर मॆं रॊयॆ भामिनी, मंचॊं पर कवि राज ।
ऎसी तैसी कर रही,खुलॆ-आम अब प्याज ॥१०॥
कवि-"राज बुन्दॆली"
०४/०९/२०१३
मौलिक एवं अप्रकाशित रचना
Comment
आपकी यह विधा पारंपरिक छंद में हास्य का तड्का मेरे मन का भा गया । विशेषकर ये दोहा -
करियॆ साजन आज सॆ, सब्जी लाना बन्द ।
दिन-दिन दुर्लभ हॊ रहीं, जैसॆ मात्रिक छंद ॥१॥
परवल पीली पड़ गई, मिर्ची गई सुखाय ।
बहुमत पाया प्याज नॆं,शासन रही चलाय ॥२॥
पालक खड़ी विपक्ष मॆं, चीखॆ हाँथ उठाय ।
सुनत करॆला सत्र मॆं,सबकी ध्यान लगाय ॥५॥
सूरन की पूरन भईं, सारी आज मुराद ।
कहॆ जीभ कॊ काटकॆ, लॆ लॆ मॆरा स्वाद ॥६॥ये दोहे कुछ ज्यादा ही पसंद आये मुझे आदरणीय ////
बहुत ही सुन्दर दोहे रचे है अपने आदरणीय राज जी ,आनंद आ गया //हार्दिक बधाई आपको //सादर
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