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बढ़े कला संगीत, मिटे ना लेकिन पशुता-

गुरु-गुरुता गायब गजब, अजब आधुनिक काल । 

गुरुजन रहे खिलाय गुल, गुलछर्रे गुट बाल । 

 

गुलछर्रे गुट बाल, चाल चल जाय अनोखी । 

नीति नियम उपदेश, लगें ना बातें चोखी । 

 

बढ़े कला संगीत, मिटे ना लेकिन पशुता । 

भरा पड़ा साहित्य, नहीं कायम गुरु-गुरुता ॥

 

मौलिक/ अप्रकाशित  

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Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on September 9, 2013 at 5:47pm

गुरु-गुरुता गायब गजब, अजब आधुनिक काल । 

गुरुजन रहे खिलाय गुल, गुलछर्रे गुट बाल । 

 तीखे व्यंग और शब्दों के चयन के लिए हार्दिक बधाई ॥

 

Comment by अरुन 'अनन्त' on September 6, 2013 at 2:26pm

बेहतरीन लाजवाब गज़ब गज़ब गजब आपका जवाब नहीं आदरणीय क्या बात कही है आपने कुण्डलिया छंद के जरिये बहुत बहुत बधाई स्वीकारें.


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 6, 2013 at 12:38pm

कुण्डलिया छंद में आप का कोई जोड़ नही आदरणीय, बधाई इस प्रस्तुति पर 

Comment by Meena Pathak on September 5, 2013 at 11:47pm

बढ़े कला संगीत, मिटे ना लेकिन पशुता । 

भरा पड़ा साहित्य, नहीं कायम गुरु-गुरुता ॥..........बहुत सही
बधाई आप को

Comment by बृजेश नीरज on September 5, 2013 at 11:05pm

सच बात कही आपने! बहुत खूब! आपको हार्दिक बधाई!

Comment by ram shiromani pathak on September 5, 2013 at 8:29pm

गुरु-गुरुता गायब गजब, अजब आधुनिक काल । 

मिले खिलाते गुल गुरू, गुलछर्रे गुट बाल । ///सुन्दर अन्त्यानुप्राश प्रयोग 

बहुत ही सुन्दर कुण्डलिया  आदरणीय रविकर  जी ///हार्दिक बधाई आपको 

 

Comment by रविकर on September 5, 2013 at 8:05pm

 आदरणीय गिरिराज जी आदरणीय श्याम जी आदरेया अन्नपूर्णा जी


संशोधन कर दिया है आदरणीय आशुतोष जी-

आभार--

गुरु-गुरुता गायब गजब, अजब आधुनिक काल ।
गुरुजन रहे खिलाय गुल , गुलछर्रे गुट बाल ।

Comment by annapurna bajpai on September 5, 2013 at 7:25pm

आदरणीय रविकर जी सुंदर कुण्डलिया के लिए बधाई स्वीकारें । 

Comment by Dr Ashutosh Vajpeyee on September 5, 2013 at 6:53pm

सुन्दर कुण्डलिया के लिए बधाई रविकर जी किन्तु गुरू शब्द अशुद्ध है और गुरु यहाँ पर चलेगा नहीं इसलिए सुधार अपेक्षित है 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 5, 2013 at 6:20pm

आदरणीय र विकर जी , सुन्दर रचना , सत्य वचन !!  बहुत बधाई !!

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