गुरु-गुरुता गायब गजब, अजब आधुनिक काल ।
गुरुजन रहे खिलाय गुल, गुलछर्रे गुट बाल ।
गुलछर्रे गुट बाल, चाल चल जाय अनोखी ।
नीति नियम उपदेश, लगें ना बातें चोखी ।
बढ़े कला संगीत, मिटे ना लेकिन पशुता ।
भरा पड़ा साहित्य, नहीं कायम गुरु-गुरुता ॥
मौलिक/ अप्रकाशित
Comment
गुरु-गुरुता गायब गजब, अजब आधुनिक काल ।
गुरुजन रहे खिलाय गुल, गुलछर्रे गुट बाल ।
तीखे व्यंग और शब्दों के चयन के लिए हार्दिक बधाई ॥
बेहतरीन लाजवाब गज़ब गज़ब गजब आपका जवाब नहीं आदरणीय क्या बात कही है आपने कुण्डलिया छंद के जरिये बहुत बहुत बधाई स्वीकारें.
कुण्डलिया छंद में आप का कोई जोड़ नही आदरणीय, बधाई इस प्रस्तुति पर
बढ़े कला संगीत, मिटे ना लेकिन पशुता ।
भरा पड़ा साहित्य, नहीं कायम गुरु-गुरुता ॥..........बहुत सही
बधाई आप को
सच बात कही आपने! बहुत खूब! आपको हार्दिक बधाई!
गुरु-गुरुता गायब गजब, अजब आधुनिक काल ।
मिले खिलाते गुल गुरू, गुलछर्रे गुट बाल । ///सुन्दर अन्त्यानुप्राश प्रयोग
बहुत ही सुन्दर कुण्डलिया आदरणीय रविकर जी ///हार्दिक बधाई आपको
आदरणीय गिरिराज जी आदरणीय श्याम जी आदरेया अन्नपूर्णा जी
संशोधन कर दिया है आदरणीय आशुतोष जी-
आभार--
गुरु-गुरुता गायब गजब, अजब आधुनिक काल ।
गुरुजन रहे खिलाय गुल , गुलछर्रे गुट बाल ।
आदरणीय रविकर जी सुंदर कुण्डलिया के लिए बधाई स्वीकारें ।
सुन्दर कुण्डलिया के लिए बधाई रविकर जी किन्तु गुरू शब्द अशुद्ध है और गुरु यहाँ पर चलेगा नहीं इसलिए सुधार अपेक्षित है
आदरणीय र विकर जी , सुन्दर रचना , सत्य वचन !! बहुत बधाई !!
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