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भर देती सन्देह, खोपड़ी रविकर ठनकी-


कमा कमा परदेश में, पिया भुलाते नेह |
सुबह-सवेरे ज्वर कमा, तप्त रात भर देह |


तप्त रात भर देह, मेह रिमझिम सावन की |
भर देती सन्देह, खोपड़ी रविकर ठनकी |


भूल गए क्यूँ गेह, शीघ्र आ जाओ बलमा |
किंवा लाये सौत, हमें देते हो चकमा ||

मौलिक / अप्रकाशित

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on September 10, 2013 at 7:07pm

आदरणीय रविकर जी 

सुन्दर कुंडलिया.. ऐसे दर्द भरे कथ्य में भी हास्य का पुट डाल सहजता से जिस व्यक्त किया है उसके लिए बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएँ 

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on September 8, 2013 at 4:44pm

हमें मत दो अब चकमा ... किवा लाये सौत......वाह वाह मन गदगद हो गया!

Comment by Meena Pathak on September 7, 2013 at 11:38pm

भूल गए क्यूँ गेह, शीघ्र आ जाओ बलमा |
किंवा लाये सौत, हमें देते हो चकमा ||.........क्या बात, बहुत खूब
बधाई आदरणीय

Comment by बृजेश नीरज on September 7, 2013 at 10:40pm

बहुत खूब! आपको बहुत बधाई!

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on September 7, 2013 at 7:00pm

बहुत खूब | बधाई 

चकमा तो  देता नहीं, सौत न लावे देश

लौटे अब तो शीघ्र ही, काम अभी कुछ शेष

काम अभी कुछ शेष, रही कसक मन सावन की

खेल न पाया संग, कसक  सावनी  झूले की

आ ना पाया देश, है मुझे भी यह  सदमा 

करना ज़रा यकीन, देऊ न  कोई  चकमा | - लक्ष्मण 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on September 7, 2013 at 4:07pm

आपके लेखन का कोई जवाब नहीं ..सादर प्रणाम के साथ


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 7, 2013 at 3:44pm
अति सुन्दर !!!! रविकर भाई जी बहुत बधाई !!!!
Comment by ram shiromani pathak on September 7, 2013 at 3:18pm

कमा कमा परदेश में, पिया भुलाते नेह |
सुबह-सवेरे ज्वर कमा, तप्त रात भर देह |

बहुत ही सुन्दर आदरणीय रविकर  जी //हार्दिक बधाई आपको //सादर 

Comment by Meena Pathak on September 7, 2013 at 9:44am

बहुत बढ़िया .... बधाई


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on September 6, 2013 at 10:10pm

बहुत बढ़िया आदरणीय रविकर सर दाद कुबूल करें

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