कमा कमा परदेश में, पिया भुलाते नेह |
सुबह-सवेरे ज्वर कमा, तप्त रात भर देह |
तप्त रात भर देह, मेह रिमझिम सावन की |
भर देती सन्देह, खोपड़ी रविकर ठनकी |
भूल गए क्यूँ गेह, शीघ्र आ जाओ बलमा |
किंवा लाये सौत, हमें देते हो चकमा ||
मौलिक / अप्रकाशित
Comment
आदरणीय रविकर जी
सुन्दर कुंडलिया.. ऐसे दर्द भरे कथ्य में भी हास्य का पुट डाल सहजता से जिस व्यक्त किया है उसके लिए बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएँ
हमें मत दो अब चकमा ... किवा लाये सौत......वाह वाह मन गदगद हो गया!
भूल गए क्यूँ गेह, शीघ्र आ जाओ बलमा |
किंवा लाये सौत, हमें देते हो चकमा ||.........क्या बात, बहुत खूब
बधाई आदरणीय
बहुत खूब! आपको बहुत बधाई!
बहुत खूब | बधाई
चकमा तो देता नहीं, सौत न लावे देश
लौटे अब तो शीघ्र ही, काम अभी कुछ शेष
काम अभी कुछ शेष, रही कसक मन सावन की
खेल न पाया संग, कसक सावनी झूले की
आ ना पाया देश, है मुझे भी यह सदमा
करना ज़रा यकीन, देऊ न कोई चकमा | - लक्ष्मण
आपके लेखन का कोई जवाब नहीं ..सादर प्रणाम के साथ
कमा कमा परदेश में, पिया भुलाते नेह |
सुबह-सवेरे ज्वर कमा, तप्त रात भर देह |
बहुत ही सुन्दर आदरणीय रविकर जी //हार्दिक बधाई आपको //सादर
बहुत बढ़िया .... बधाई
बहुत बढ़िया आदरणीय रविकर सर दाद कुबूल करें
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