मन की खिड़की पर जमा, छली कुल-जमा एक |
तीनों पाली में छले, बरबस रस्ता छेंक |
बरबस रस्ता छेंक, आह-उच्छ्वास छोड़ती |
पाऊँ कष्ट अनेक, व्यस्त हर कष्ट जोड़ती |
रविकर कैसा मोह, नहीं दे पाऊँ झिड़की |
चिदानन्द सन्दोह, बंद कर मन की खिड़की ||
मौलिक / अप्रकाशित
Comment
वाह वाह आदरणीय रविकर सर जी बेहतरीन कुण्डलिया छंद बहुत बहुत बधाई स्वीकारें
बधाई बधाई
वाह! बहुत सुन्दर! आदरणीय आपको हार्दिक बधाई!
सुंदर कुंडली छंद , बधाई स्वीकारें आदरणीय रविकर जी
आ0 रविकर भाई जी, सादर प्रणाम! सुन्दर प्रस्तुति, लेकिन द्वितीय चरण में शब्दों का क्रम कुछ इस ..3+3+2+3 तरह हो तो गेयता बढ़ जाएगी ! आपको हार्दिक बधाई। सादर,
इस प्रस्तुति हेतु बहुत-बहुत बधाई व शुभकामनाएँ....
सुन्दर कुडलिया छंदों के लिए आपको बहुत बधाई आ० रविकर जी ।
बहुत सुन्दर कुण्डलिया छंद आदरणीय रविकर जी ,हार्दिक बधाई आपको //सादर
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