!!! आत्मा रोज सफल है !!!
बह्र- 2122 1122 1122 112
दीप तन तेल पिए, गर्व बढ़ाये न बने।
ज्ञान बाती से मिले, तेज बुझाये न बने।।
रोशनी खूब बढ़े, रात छिपाती मुख को,
भोर में भानु उदय, आंख मिलाये न बने।।
हम सफर राह में, मिलते हैं बिछड़ जाते हैं।
छोड़ते दर्द दिलों में, ये मिटाये न बने।।
तेल औ दीप मिले, तर्क खड़ा मौन रहे,
तेज लौ मस्त जले, अर्श बताये न बने।।
आत्मा रोज सफल है, सुविचारक बनकर।
जिन्दगी आज सकल दाग, छुड़ाये न बने।।
सुब्ह से शाम हमें, खौफ रहे दुनिया का।
दर्द दहशत में रहें, तर्ज बनाये न बने।।
बात जब शाह से करते हैं, गरीबों से नहीं।
क्या बने बात जहां, बात बनाये न बने।।
धर्म औ कर्म सदा, साथ रहा करते हैं।
दीन की राह चले, सत्य मिटाये न बने।।
के0पी0सत्यम/मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आ0 बृजेश भाई जी, आपके स्नेह और उत्साहवर्धन हेतु आपका हृदयतल से बहुत - बहुत आभार। सादर,
आ0 विजय भाई जी, आपके स्नेह और उत्साहवर्धन हेतु आपका हृदयतल से बहुत - बहुत आभार। सादर,
इस सुन्दर रचनाकर्म के लिए आपको बहुत बहुत बधाई आदरणीय केवल भाई!
आ0 गनेश सर जी, जी सर, आप लोगों के मार्गदर्शन से ही कुछ सीख पा रहा हूं। आपके अपार स्नेह और उत्साहवर्धन हेतु आपका हार्दिक आभार। सादर,
आ0 मीना पाठक जी, आपके स्नेह और उत्साहवर्धन हेतु आपका हार्दिक आभार। सादर,
आ0 जितेन्द्र भाई जी, आपके अपार स्नेह और उत्साहवर्धन हेतु आपका हार्दिक आभार। सादर,
आ0 भण्डारी भाई जी, आपके अपार स्नेह और उत्साहवर्धन हेतु आपका हार्दिक आभार। सादर,
आ0 राम शिरोमणि भाई जी, आपके स्नेह और उत्साहवर्धन हेतु आपका हार्दिक आभार। सादर,
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बात जब शाह से करते हैं, गरीबों से नहीं।
क्या बने बात जहां, बात बनाये न बने।।//
केवल भाई तरही की जमीन भले आप ने ली है किन्तु ग़ज़ल तो यहाँ स्वतंत्र है, फिर तरही वाला शेर न रखे तो बढ़िया, उसको हटा कर ग़ज़ल मुकम्मल पोस्ट करें , ग़ज़ल अच्छी हुई है, बधाई ।
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