For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

होंठ हंसते हैं मगर मन में बवंडर क्यों है ? 
आँखें सोती हैं पर इस नींद में अंतर क्यों है? 
जानते हैं की दो तन एक जान हैं हम. . 
फिर भी,हर मोड़ पे दूरी ही मुक़द्दर क्यों है ? 

 
हम ने तो साथ साथ चलने की खाई थी कसम.. 
साथ देखे थे सपने, निभाई थी हर रस्म.. 
हम ने विश्वास की डोरी से खुद को बाँधा था .. 
आज उस डोर में पड़ती हुई गाँठें क्यों हैं ? 

 
जाने कब से  हुआ शुरू ,और चलने लगा.. 
बन के विष ज़िंदगी में घुलने लगा.
अब तो हम साँस भी नही लेते कभी पूरी तरह.. 
एक चेहरे पे,अनगिनत ,ये मुखौटे क्यों हैं ?

 
जाने अंजाने हर भीड़ में ही .. 
ढूँढती हूँ मैं चेहरा सच का.. 
खूबसूरत चेहरों में ज़रा बदसूरत .. 
नही मिलता, फिर भी बस, ढूँढती हूँ.. 



मुखौटा सच का ..????????? 

 

Views: 428

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Lata R.Ojha on December 28, 2010 at 8:34pm
@ Navin ji : sach.. aur sochti hoon ki kaash aisa na hota to behtar hota.. [der se reply ke liye maaf kijiyega ]
Comment by Lata R.Ojha on December 28, 2010 at 7:03pm
आभार सतीश जी :) 
Comment by satish mapatpuri on December 28, 2010 at 5:19pm
 
होंठ हंसते हैं मगर मन में बवंडर क्यों है ? 
आँखें सोती हैं पर इस नींद में अंतर क्यों है? 
जानते हैं की दो तन एक जान हैं हम. . 
फिर भी,हर मोड़ पे दूरी ही मुक़द्दर क्यों है ? 
बहुत खुबसूरत. शुक्रिया लताजी. 
Comment by Lata R.Ojha on December 28, 2010 at 4:46pm
धन्यवाद गिरी जी और गणेश जी . आप सब की उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया और भी बेहतर लिखने को प्रेरित करती हैं :) 
Comment by Rash Bihari Ravi on December 28, 2010 at 1:19pm
khubsurat lajabab

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on December 28, 2010 at 10:41am

ढूंढ़ते रह जाओगे.....

लता जी, आप की इस बेहतरीन काव्य कृति को पढ़ मैं अभिभूत हूँ और किसी फिल्म का यह गीत यह याद आ रहा है ........

जब भी जी चाहे नई दुनिया बसा लेते है लोग,

एक चेहरे पर कई चेहरे लगा लेते है लोग |

बेहतरीन प्रस्तुति और यह दो पक्ति....

हम ने विश्वास की डोरी से खुद को बाँधा था .. 
आज उस डोर में पड़ती हुई गाँठें क्यों हैं ?
बधाई इस शानदार अभिव्यक्ति पर, उम्मीद करते है कि आगे भी आप कि रचनायें और अन्य रचनाकारों कि रचनाओं पर आपका बहुमूल्य विचार प्राप्त होगा |

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-178

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 178 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
3 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 166 in the group चित्र से काव्य तक
"   आदरणीया प्रतिभा पाण्डे जी सादर, प्रस्तुत छंदों की सराहना हेतु आपका हार्दिक आभार.…"
3 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 166 in the group चित्र से काव्य तक
"   आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी जी सादर, प्रस्तुत रोला छंदों पर उत्साहवर्धन हेतु आपका…"
3 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 166 in the group चित्र से काव्य तक
"    आदरणीय गिरिराज जी सादर, प्रस्तुत छंदों की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार. सादर "
3 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 166 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश जी छंदों पर उपस्थिति और प्रशंसा के लिये हार्दिक आभार "
4 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 166 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय गिरिराज जी छंदों पर उपस्थित और प्रशंसा के लिए हार्दिक आभार "
4 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 166 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक जी छंदों की  प्रशंसा और उत्साहवर्धन के लिये हार्दिक आभार "
5 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 166 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक आभार आदरणीय मयंक कुमार जी"
5 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 166 in the group चित्र से काव्य तक
" छंदों की प्रशंसा के लिये हार्दिक आभार आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी जी"
5 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 166 in the group चित्र से काव्य तक
"    गाँवों का यह दृश्य, आम है बिलकुल इतना। आज  शहर  बिन भीड़, लगे है सूना…"
5 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 166 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ भाईजी,आपकी टिप्पणी और प्रतिक्रिया उत्साह वर्धक है, मेरा प्रयास सफल हुआ। हार्दिक धन्यवाद…"
5 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 166 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अशोक जी, सादर अभिवादन। उत्तम छंद हुए हैं हार्दिक बधाई।"
5 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service