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मेरी आँखों की दुनिया तुझको दिखाऊँ  कैसे? 

जो मेरे ख्वाब हैं वो रूबरू लाऊँ  कैसे ? 

ज़िंदगी सिर्फ़ मुस्कुराती खुशियाँ नही ,पता है ,  
पर इस झूंठ पे तुम्हे यक़ीन दिलाऊं  कैसे ? 
 
मेरे अश्कों में तुम खुद को खो रहे हो क्यों ? 
तुम हो तो मैं हूँ जताऊं  कैसे ? 

ओढ़ मुस्कान लबों पे, चलती जा रही.. 
तेरी कोशिशों का क़र्ज़, और चुकाऊं  कैसे ? 
 
मुझे पता है साँसें भी ख़त्म होती हैं.. 
तुझसे जुदाई का डर आख़िर छुपाऊँ  कैसे ? 

रोज़ सजदा 'उसके' दरबार में कर लेती हूँ, लेकिन.. 
गिनती साँसों की घट रही है, भुलाऊं  कैसे ? 

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Comment by Lata R.Ojha on December 30, 2010 at 1:15pm
नवीन जी धन्यवाद :) 
Comment by Lata R.Ojha on December 29, 2010 at 2:01pm
सराहना के लिए धन्यवाद भास्कर जी :) 
Comment by Bhasker Agrawal on December 29, 2010 at 1:04pm
बहुत सुन्दर प्रस्तुति है..बधाई

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