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गरूर से उठा ये सर मैं झुकाऊ कैसे ?

अपनी यादों से उसके साए मिटाऊं कैसे ?

गुजरा है जिंदगी का हर पल उसी के पहलूँ में !

उसकी साँसों की महक को मैं  भुलाऊं कैसे ?

शिकवा रहा है उसको मेरे न मनाने का यारो ,

मालुम नही ये फन मुझे उसको ये बताऊँ कैसे ?

बड़ा बेगैरत होकर निकला हूँ उसके कूंचे से मैं ,

फिर उससे मिलने उसी दर पे मैं जाऊं कैसे ?

दिलके अरमानो की किश्ती तो  तूफ़ान में बह गयी ,

अब टूटी पतवार को साहिल पे लाऊं कैसे ?

दिल तडपता है तो आँखें बरसती है ,

मोहब्बत के मोती अश्कों में बहाऊं कैसे ?

बेवफाई करके वो तो  गैरों की बांहों में जा बसी ,

 दिया है जो जख्म मुझे उसका इलाज़ अब कराऊ कैसे ?

खुद से ही खफा हूँ या दुश्मनी है खुदा से ,

वो किस्मत में ही नहीं तो उसको पाऊं कैसे ?

वादे इश्क के तोड़ के वो ख़ुशी से चल दिए ,

तो ये बंधन जन्मो जन्मो का मैं निभाऊं कैसे ?

कोई तो ये बता दो की उसको भुलाऊं कैसे ?

कोई तो ये बता दो की उसको भुलाऊं कैसे ?

मौलिक व अप्रकाशित

 

 

 

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Comment by बृजेश नीरज on September 12, 2013 at 11:21pm

अच्छा प्रयास है! आपको हार्दिक बधाई!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 12, 2013 at 4:32pm

इस मंच पर ग़ज़ल से सम्बन्धित कई आलेख हैं, कृपया उनका अध्ययन करॆं.

शुभ-शुभ

Comment by अरुन 'अनन्त' on September 11, 2013 at 9:25pm

आदरणीय अनुराग भाई जी प्रयास बहुत ही सुन्दर है किन्तु रवानगी की कमी लगी मुझे प्रयासरत रहें इस रचना पर बधाई स्वीकारें.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 11, 2013 at 7:01pm

आदरणीय अनुराग भाई , अच्छी नज़्म लिखी भाई !! बहुत बधाई !!

Comment by रविकर on September 11, 2013 at 1:57pm

जिस पर है इल्जाम क़त्ल का, करता वही इलाज |
खुद इलाज करने से आये, चतुर चिकित्सक बाज ||


आदरणीय !
बधाई -
(भगाए जाने की मत समझ लेना-)

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