गरूर से उठा ये सर मैं झुकाऊ कैसे ?
अपनी यादों से उसके साए मिटाऊं कैसे ?
गुजरा है जिंदगी का हर पल उसी के पहलूँ में !
उसकी साँसों की महक को मैं भुलाऊं कैसे ?
शिकवा रहा है उसको मेरे न मनाने का यारो ,
मालुम नही ये फन मुझे उसको ये बताऊँ कैसे ?
बड़ा बेगैरत होकर निकला हूँ उसके कूंचे से मैं ,
फिर उससे मिलने उसी दर पे मैं जाऊं कैसे ?
दिलके अरमानो की किश्ती तो तूफ़ान में बह गयी ,
अब टूटी पतवार को साहिल पे लाऊं कैसे ?
दिल तडपता है तो आँखें बरसती है ,
मोहब्बत के मोती अश्कों में बहाऊं कैसे ?
बेवफाई करके वो तो गैरों की बांहों में जा बसी ,
दिया है जो जख्म मुझे उसका इलाज़ अब कराऊ कैसे ?
खुद से ही खफा हूँ या दुश्मनी है खुदा से ,
वो किस्मत में ही नहीं तो उसको पाऊं कैसे ?
वादे इश्क के तोड़ के वो ख़ुशी से चल दिए ,
तो ये बंधन जन्मो जन्मो का मैं निभाऊं कैसे ?
कोई तो ये बता दो की उसको भुलाऊं कैसे ?
कोई तो ये बता दो की उसको भुलाऊं कैसे ?
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
अच्छा प्रयास है! आपको हार्दिक बधाई!
इस मंच पर ग़ज़ल से सम्बन्धित कई आलेख हैं, कृपया उनका अध्ययन करॆं.
शुभ-शुभ
आदरणीय अनुराग भाई जी प्रयास बहुत ही सुन्दर है किन्तु रवानगी की कमी लगी मुझे प्रयासरत रहें इस रचना पर बधाई स्वीकारें.
आदरणीय अनुराग भाई , अच्छी नज़्म लिखी भाई !! बहुत बधाई !!
जिस पर है इल्जाम क़त्ल का, करता वही इलाज |
खुद इलाज करने से आये, चतुर चिकित्सक बाज ||
आदरणीय !
बधाई -
(भगाए जाने की मत समझ लेना-)
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