मौन !
ये कैसा मौन ?
अन्तर्मन में ,
कुछ टूटता सा ,
सुनाई देती जिसकी गूंज देर तक !
हर घटना पर छोड़ जाता कई यक्ष प्रशन !
आँखों में ये कैसा मौन ?
लबो पे ये कैसा मौन ?
दिल में बरछी की तरह गड़ता ,
तीर की तरह चुभता ये मौन ,
ये गवाह है एक बड़े विनाश का !
और जवाब है खुद ही अबूझ सवालों का ,
दिल की हर भावना से जुड़ा ,
मन के किसी कोने में पला ,
पल पल गहराता जाता,
ये कैसा अबूझ मौन ?
जो पहेली बन गया है ,
देखता है सबकुछ,
फिर एक चिरनिंद्रा सी चुप्पी ,
साध लेता ये ,
और घेर लेता वजूद को ,
और गहराता जाता ये मौन !
ये सच है या कोई स्वप्न ,
ये जहर है या अमृत ?
हर पीढ़ी के लिए ,
जाने कब टूटेगा ये मौन ?
ये भ्रम है या छलावा ?
या है एक अटूट सहारा ,
तोलता है जज्बातों को ,
समय की कसौटी पे ,
मन के अवसाद को मिटाने के लिए ,
टूट ही जाए अब ये मौन !
.
-“डॉ. अनुराग सैनी “-
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
हर घटना पर छोड़ जाता कई यक्ष प्रशन !
आँखों में ये कैसा मौन ?
लबो पे ये कैसा मौन ?
दिल में बरछी की तरह गड़ता ,
तीर की तरह चुभता ये मौन ,
ये गवाह है एक बड़े विनाश का !............. मौन की सटीक समीक्षा
बहुत बहुत शुभकामनाएँ
लबो पे ये कैसा मौन ?
दिल में बरछी की तरह गड़ता ,
तीर की तरह चुभता ये मौन ,
ये गवाह है एक बड़े विनाश का !
और जवाब है खुद ही अबूझ सवालों का ,
आदरणीय डॉ अनुराग जी ..प्रभावी रचना ..सच में ये मौन विध्वंसक हो जाता है ऐसे वक्त पर .....
सुन्दर
भ्रमर ५
आभार सभी का ,
बहुत सुन्दर! आपको हार्दिक बधाई!
बहुत सुन्दर 'मौन' आप का .. बधाई
आदरणीय अनुराग जी बहुत बढ़िया सुंदर भावों का सम्प्रेषण हुआ है बधाई आपको ।
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