"इक तो तू रोज दारू पीकर आता है, रोज समय से पहले भाग जाता है...और जो काम बताओ, उसे पूरा ही नहीं करता...ऐसा कर, कल से काम पे आना बंद कर..समझ !" रामेश्वर ने रोज रोज से तंगाकर गुस्से में कहा..
लखन ने बिना पछतावा किये, वहां से जाते हुए कहा..."अपने को क्या, सरकार इतना सस्ता राशन दे रही है, बच्चे स्कूल में दिन को खा ही आते है, घरवाली मजूरी करती ही है....अपनी बोतल...."
जितेन्द्र ' गीत '
( मौलिक व् अप्रकाशित )
Comment
सही कह रहे हैं आप आदरणीय गिरिराज जी, शायद हमारे देश के नेता गरीबों के वोट पाने के चक्कर में, ऐसे हथकंडे अपनाते हो..
आपका बहुत बहुत आभार
सादर!
वाह जी ....
ऐसा भी होता है ....
आदरणीय जितेंद्र जी बढ़िया लघु कथा , सरकार तो वैसे ही नस्ल बिगड़ने का काम कर रही है । बधाई आपको ।
सिक्के का सही पक्ष तो हर बार सामने आना है, चाहे जैसे उछालो. लघुकथा के माध्यम से खोटे सिक्के की इस उछाल के लिए आपको हार्दिक बधाई भाई जीतजी.. .
शुभ-शुभ
वाह भाई वाह, गज़ब का तंज किया है, सरकार निठल्ला बनाने की पूरी तैयारी कर ली है, अब तो सुनने में आ रहा है क़ि मोबाइल भी टॉक टाइम के साथ मिलेगा, बढ़िया है !!
अच्छी लघुकथा पर बधाई प्रेषित है ।
वाह !! जितेन्द भाई !! सरकारी राहत सच मे यही असर दिखा रही है !! एक दिन कमाओ महीने भर खाओ, बिना काम किये !! बधाई !!
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