For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आदर्श पुलिस की संकल्पना अब भी अधूरी

छत्तीसगढ़ राज्य के निर्माण को दस साल हो गए हैं और प्रदेश ने विकास के कई आयाम गढ़े हैं, लेकिन पुलिस की चुनौती कहीं से कम नहीं हुई हो, नजर नहीं आती। प्रदेश के हालात को देखें तो पुलिस की जवाबदेही पहले से अधिक और बढ़ गई है। बढ़ते औद्योगीकरण के कारण अपराध में वृद्धि हो रही है, दूसरी ओर साइबर अपराध से निपटने राज्य की पुलिस के पास तकनीक का अभाव है। लिहाजा ऐसा कोई मामला आने के बाद पुलिस उस तरीके से छानबीन नहीं कर पाती, जिस तरीके से वे अन्य अपराधों के सुराग तलाशते हैं। छत्तीसगढ़ पुलिस में निश्चित ही इन बीते बरसों में कई परिवर्तन हुए हैं तथा कई उपलब्धि हासिल हुई हैं और संसाधन भी बढ़े हैं, मगर में समाज शांति व्यवस्था बनाने के लिए दिन-रात एक करने वाली पुलिस की स्थिति में कुछ खास बदलाव नहीं हुए हैं। आलम यह है कि बढ़ती बेरोजगारी के कारण युवाओं में पुलिस सेवा के प्रति रूझान तो है, लेकिन उनके मन में एक कसक भी देखी जाती है, जिसे समझकर सरकार को दूर करने का प्रयास करना चाहिए। तब कहीं जाकर पुलिस के जवान ज्यादा उर्जा के साथ काम करेंगे। आम जनता के समक्ष बरसों से जो धूमिल छवि पुलिस की बनी हुई है, उसे दूर किए जाने की जरूरत है। पुलिस और जनता के बीच समन्वय बनाने और दूरियां कम करने कई तरह के प्रयास किए गए हैं, लेकिन प्रदेश में पुलिस महकमे को वह सफलता हासिल नहीं हो सकी है, जिस तरह की मंशा थी। ऐसे में कहा जा सकता है कि आज भी आदर्श पुलिस की संकल्पना अधूरी नजर आती है। समाज में शांति स्थापित करने पुलिस का बड़ा दायित्व है, लेकिन जिस तरीके से भय, आम जनता के चेहरे पर पुलिस के नाम पर देखा जाता है, इस पर भी विचार किए जाने की जरूरत है कि कैसे आम जनता के मन में पुलिस के प्रति बरसों से बने उस चेहरे को उज्जवल छवि के रूप में उकेरा जाए।
छत्तीसगढ़ के दस बरस के साथ ही पुलिस महकमा का भी दस साल पूरे हो गए हैं और यह बात समझने की है कि केवल दिन बढ़ रहे हैं, लेकिन पुलिस की कार्यक्षमता बढ़ाने किसी तरह के प्रयास नहीं हो रहे हैं। पिछले कुछ सालों में पुलिस के जवानों की भर्ती हुई है, निःसंदेह इससे प्रदेश के बेरोजगारों को लाभ हुआ है, किन्तु आज भी पुलिस विभाग में हजारों की संख्या में अनेक पदों पर रिक्तियां बरकरार है। छग जैसे शांतिप्रिय प्रदेश में नक्सलवाद ने इस तरह से पैर पसार लिया है, जिससे पुलिस तंत्र को मजबूत बनाए जाने की आवश्यकता बढ़ गई है। प्रदेश की जेलों में बंदियों व कैदियों के फरार होने की बात सामने आती रही है, उस पर रोक लगाने तो पुलिस विभाग के ही अधिकारी-कर्मचारियों पर सख्ती बरती जा सकती है। दूसरी ओर यह बात भी स्पष्ट तौर पर कही जा सकती है कि यदि समाज में शांति व्यवस्था बनानी है या फिर अपराध पर रोकथाम करनी है तो यहां एक आम व्यक्ति की भूमिका भी महत्वपूर्ण हो जाती है, क्योंकि हजारों की संख्या में रहने वाली पुलिस, भला किसी सहयोग के इन होने वाले अपराधों को कैसे रोके। इस मामले पर गौर करें तो इसके दो पहलू हैं, जनता इसलिए पुलिस से दूर रहती है, क्योंकि कई बार पुलिस का रवैया उसके साथ भी अपराधियों की तरह रह जाता है। ऐसे में होना यह चाहिए कि पुलिस को आम लोगों से जुड़कर कार्य करना चाहिए। जब एक पुलिस आदर्श व्यक्ति की तरह किसी आम जनता से पेश आए तो कहीं भी गुजाइश नहीं बनती कि जनता भी अपने कर्तव्यों से विमुख हो। पुलिस, समाज का एक ऐसा हिस्सा है, जिसकी अहमियत हर पल है, लेकिन जब यह जनता के हितों को दरकिनार कर कार्य करने लगती है तो फिर पुलिस के प्रति लोगों का विश्वास उठना स्वाभाविक ही है। पुलिस की जो धूमिल छवि बनी हुई है, उस पर विचार करना चाहिए और जनता के प्रति सह्दयता की भावना रखनी चाहिए। वे भी मानवीय पहलू से जुड़ी हैं, किन्तु ऐसे कौन से हालात निर्मित हो जाते हैं कि पुलिस के कार्य करने का तरीका दिशाहीन हो जाता है, इस पर भी सोचने की जरूरत है। राजनीतिक हस्तक्षेप के कारण भी पुलिस अपना कर्तव्य कई बार पूरी तरह से नहीं निभा पाता।
सरकार ने पुलिस को आम जनता के नजदीक लाने तमाम तरह के प्रयास किए हैं, जिसमें आदर्श पुलिस थाना की स्थापना को भी हम एक मान सकते हैं। लगभग हर जिले में एक थाने को आदर्श थाना घोशित किया गया है, मगर इन थानों में आदर्श संहिता के पालन की जो संकल्पना की गई थी, वह दिखाई नहीं देती। आदर्श थानों की हालत भी वैसी है, जेसे अन्य थानों की है। संसाधनों का अभाव भी बना हुआ है। पुलिस विभाग एक ऐसा समाज का अंग है, जिससे हर व्यक्ति जुड़ा हुआ है। संसाधनों की कमी के साथ स्टाफ की कमी, इस विभाग की सबसे बड़ी समस्या व मजबूरी कही जा सकती है, जबकि होना यह चाहिए कि इस विभाग में पर्याप्त पुलिस होनी चाहिए, जिससे समाज में शांति व्यवस्था सुदृढ़ किया जा सके, लेकिन छत्तीसगढ़ बनने के बाद जिस तेज गति से पुलिस विभाग का कायाकल्प होना चाहिए, वह नहीं हो सका है। पिछले सालों में पुलिस विभाग द्वारा आम लोगों के प्रकरणों पर त्वरित निराकरण करने के लिए चलित थाने जैसे आयोजन किए गए, इसके कुछ लाभ भी हुए, मगर जिस तरह की अपेक्षा इस आयोजन को लेकर थी, वह भी पूरी नहीं हो सकी। इसके अलावा कई बार पुलिस को गांधीगिरी भी करते देखा गया, जिसमें लोगों से कानून पालन करने अनुरोध किया गया। इन प्रयासों को पुलिस की छवि को बेहतर बनाने के लिए विभाग के महत्वपूर्ण निर्णयों में माना जा सकता है। समाज में जिस तरह से पुलिस की भूमिका है, उस लिहाज से उनका दायित्व भी बड़ा है, क्योंकि आम जन की सुरक्षा को जो सवाल है।
नए राज्य गठित होने के बाद शुरूआत में तो छत्तीसगढ़ में अपराध का ग्राफ कम ही था, लेकिन धीरे-धीरे यहां बढ़ते औद्योगीकरण के कारण स्थिति गंभीर होती जा रही है। इसके लिए पुलिस विभाग को पर्याप्त बल की जरूरत है। वैसे पुलिस के कार्य करने की अपनी शैली है और यह भी देखने में आता है कि पुलिस कई बार चौबीसों घंटे ड्यूटी पर रहती है, इस दौरान जाहिर सी बात है कि काम के बोझ का असर उनके मन और मस्तिष्क पर पड़ता है। इन्हीं परिस्थितियों से निपटने पुलिस तंत्र को मजबूत बनाने, जनसंख्या के अनुपात में जितनी पुलिस होनी चाहिए, वह नहीं है। आंकड़े यही बताते हैं कि हजारों की जनसंख्या के लिहाज से एक पुलिस तैनात हैं, ऐसे में भला कैसे अपराध में कमी की जाए, यह एक बड़ा सवाल है, जिस पर सरकार को विचार करने की जरूरत है। यह बात तो सही है कि समाज में पहले भी अपराध होते थे, आज भी हो रहे हैं, मगर यह बात भी समझने की है कि यदि तंत्र मजबूत हो तो ऐसी किसी अप्रिय गतिविधियों को रोका जा सकता है। फिलहाल यही बात कही जा सकती है कि पहले तो राज्य में पुलिस की संख्या में वृद्धि की जाए तथा उन्हें संसाधन से पूरी तरह लैसा किए जाए। इसके अलावा पुलिस की छवि में आदर्श की भावना लाने नैतिक शिक्षा की आवश्यकता से इंकार नहीं किया जा सकता।
देश का 26 वां राज्य छत्तीसगढ़ को विकास की दृष्टि से देखें तो यह प्रदेश अभी शिशु अवस्था में है। खनिज संपदा से परिपूर्ण इस राज्य को विकास के नए आयाम गढ़ने हैं। आज के आधुनकि और प्रौद्योगिकी युग में संचार के साधनों में वृद्धि हुई है, वहीं संसाधनों के अभावों के बीच अपराधों को रोकने पुलिस कामयाब नहीं हो रही है। इस छोटे से प्रदेश में जिस तरह से साइबर अपराध के मामले बढ़ रहे हैं, उस लिहाज से नई तकनीक की कमी, प्रशिक्षण और जानकारी का अभाव, पुलिस की कार्यक्षमता को कम कर रही है। ऐसे में विचार करने वाली बात है कि कैसे इन सभी चुनौतियों से निपटा जाए। सरकार को भी इस दिशा में पहल करनी चाहिए और कुछ ऐसी नीतियां बनानी चाहिए, जिससे पुलिस की छवि भी बदले तथा समाज में शांति भी कायम रहे है।

राजकुमार साहू
लेखक इलेक्ट्रानिक मीडिया के पत्रकार हैं

जांजगीर, छत्तीसगढ़
मोबा - 098934-94714

Views: 217

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Chetan Prakash commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post भादों की बारिश
"यह लघु कविता नहींहै। हाँ, क्षणिका हो सकती थी, जो नहीं हो पाई !"
Tuesday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

भादों की बारिश

भादों की बारिश(लघु कविता)***************लाँघ कर पर्वतमालाएं पार करसागर की सर्पीली लहरेंमैदानों में…See More
Monday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . . . विविध

मंजिल हर सोपान की, केवल है  अवसान ।मुश्किल है पहचानना, जीवन के सोपान ।। छोटी-छोटी बात पर, होने लगे…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - चली आयी है मिलने फिर किधर से ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय चेतन प्रकाश भाई ग़ज़ल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका हार्दिक …"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - चली आयी है मिलने फिर किधर से ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय सुशील भाई  गज़ल की सराहना कर उत्साह वर्धन करने के लिए आपका आभार "
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - चली आयी है मिलने फिर किधर से ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , उत्साह वर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार "
Monday
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"विगत दो माह से डबलिन में हूं जहां समय साढ़े चार घंटा पीछे है। अन्यत्र व्यस्तताओं के कारण अभी अभी…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"प्रयास  अच्छा रहा, और बेहतर हो सकता था, ऐसा आदरणीय श्री तिलक  राज कपूर साहब  बता ही…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"अच्छा  प्रयास रहा आप का किन्तु कपूर साहब के विस्तृत इस्लाह के बाद  कुछ  कहने योग्य…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"सराहनीय प्रयास रहा आपका, मुझे ग़ज़ल अच्छी लगी, स्वाभाविक है, कपूर साहब की इस्लाह के बाद  और…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आपका धन्यवाद,  आदरणीय भाई लक्ष्मण धानी मुसाफिर साहब  !"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"साधुवाद,  आपको सु श्री रिचा यादव जी !"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service