बहुत चर्चा हमारा हो रहा है
इशारों में इशारा हो रहा है /१
लकीरें हाथ की बेकार हैं सब
समझिये बस गुजारा हो रहा है /२
न जाने रूह पर गुजरी है क्या क्या
बदन का खून खारा हो रहा है /३
गगन के तारे क्यूँ जलने लगे हैं
कोई जुगनू सितारा हो रहा है /४
तुम अपनी धड़कनों को साधे रखना
तुम्हारा दिल हमारा हो रहा है/५
.............................................
बह्र : १२२२ १२२२ १२२
*सर्वथा मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आदरणीया Priyanka singh जी .... ह्रदय तल से अनेक धन्यवाद आपका ! सादर :)
वाह वाह बहुत खूब ...लाजवाब रचना ...बधाई आपको ....
विन्ध्येश्वरी त्रिपाठी विनय :
आदरणीय, प्रथमतया नमन स्वीकार करें ! जी, प्रयासरत हूँ कि कुछ अच्छा लिख सकूँ !..आपका स्नेह मिला ..हर्षित हूँ !...स्नेह देते रहिएगा ...अनेक धन्यवाद आपका ...नमन सहित :)
आदरणीय चन्द्र शेखर पाण्डेय जी :
माननीय...आपकी टिप्पणी असाधारण है मुझ साधारण कलमकार के लिए !..निश्चितरूप से आपका साथ मिलने से ..आपका आशीर्वाद मिलने से मेरा मनोबल ऊँचा हुआ है ...! हौसलाअफजाई व दाद के लिए असंख्य आभार ..ह्रदय से ! :)
डॉक्टर प्राची सिंह:
सादर नमन ..महोदया !...आपने ग़ज़ल के अनछुए एहसासात को महसूस किया है ...ह्रदय से आभार व अभिनन्दन व्यक्त करता हूँ!विनम्र धन्यवाद ....! स्नेह देते रहिएगा :)
श्री आशीष नैथानी 'सलिल ':
श्रीमान, सबसे पहले तो आपको नमन करता हूँ ... उत्तराखंड की पावन भूमि को भी प्रणाम करता हूँ ..जहां से आप हैं !..आपने ग़ज़ल को अपना स्नेह दिया .. एक नवोदित के मनोबल के लिए और क्या चाहिए ... ! बहुत बहुत आभार आपका :)
लकीरें हाथ की लेकर.... गये हो
गरीबी में गुजारा....... हो रहा है |
गगन के तारे क्यूँ जलने लगे हैं
कोई जुगनू... सितारा हो रहा है |
आदरणीय सारथी जी, बेहतरीन गजल से विविध बिम्ब उकेर कर आपने नये प्रतिमान गढे हैं। हार्दिक बधाई
बहुत खूबसूरत गज़ल आ० बैद्य नाथ 'सारथी' जी
हर शेर पर ढेर ढेर दाद क़ुबूल कीजिये..
इतनी कोमल मधुर ग़ज़लें कम ही पढ़ने को मिलती हैं
बहुत बहुत शुभकामनाएँ
लकीरें हाथ की लेकर.... गये हो
गरीबी में गुजारा....... हो रहा है |
हकीक़त... रूह को तड़पा रही है
बदन का खून खारा.. हो रहा है |
गगन के तारे क्यूँ जलने लगे हैं
कोई जुगनू... सितारा हो रहा है |
वाह वाह वाह
हर शेर लाजवाब है भाई !!!
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