हाँ
मैं पिघला दूँगा अपने शस्त्र
तुम्हारी पायल के लिए
और धरती का सौभाग्य रहे तुम्हारे पाँव
शोभा बनेंगे
किसी आक्रमणकारी राजा के दरबार की
फर्श पर एक विद्रोही कवि का खून बिखरा होगा !
हाँ
मैं लिखूंगा प्रेम कविताएँ
किन्तु ठहरो तनिक
पहले लिख लूँ एक मातमी गीत
अपने अजन्मे बच्चे के लिए
तुम्हारी हिचकियों की लय पर
बहुत छोटी होती है सिसकारियों की उम्र
हाँ
मैं बुनूँगा सपने
तुम्हारे अन्तः वस्त्रों के चटक रंग धागों से
पर इससे पहले कि उस दिवार पर -
जहाँ धुंध की तरह दिखते हैं तुम्हारे बिखराए बादल
जिनमें से झांक रहा हैं एक दागदार चाँद !
वहीं दूसरी तस्वीर में
किसी राजसी हाथी के पैरों तले है दार्शनिक का सर !
- मैं टांग दूँ अपना कवच
कह आओ मेरी माँ से कि वो कफ़न बुने
मेरे छोटे भाइयों के लिए
मैं तुम्हारे बनाए बादलों पर रहूँगा
हाँ
मुझे प्रेम है तुमसे
और तुम्हे मुर्दे पसंद हैं !
.
.
.
अरुन श्री !
"मौलिक व अप्रकाशित"
Comment
जहाँ धुंध की तरह दिखते हैं तुम्हारे बिखराए बादल
जिनमें से झांक रहा हैं एक दागदार चाँद !
वहीं दूसरी तस्वीर में
किसी राजसी हाथी के पैरों तले है दार्शनिक का सर !
- मैं टांग दूँ अपना कवच
कह आओ मेरी माँ से कि वो कफ़न बुने
मेरे छोटे भाइयों के लिए
मैं तुम्हारे बनाए बादलों पर रहूँगा
प्रिय अरुण जी ...अद्भुत ...निराली रचना ...पढ़ते सोचते उलझे ही रह गया कुछ पल ...प्रेम में सब जायज है ?...भ्रमर ५
अद्भुत रचना, आदरणीय अरुण भाई ! निशब्द हूँ ! समझ नही आता किन शब्दों में प्रशंसा करूँ ! पूरी रचना लाजवाब और अंतिम पंक्तियों का तो कहना ही क्या.....
मैं टांग दूँ अपना कवच
कह आओ मेरी माँ से कि वो कफ़न बुने
मेरे छोटे भाइयों के लिए
मैं तुम्हारे बनाए बादलों पर रहूँगा
हाँ
मुझे प्रेम है तुमसे
और तुम्हे मुर्दे पसंद हैं
इस अप्रतिम रचना के लिए अनंत बधाइयाँ स्वीकारें भाई, !
बेहतरीन रचना ....अत्यंत गंभीर रचना के लिए हार्दिक बधाई स्वीकारें
अगर आपने यह कविता पृथ्वीराज को पढा दी होती तो, शायद भारत आक्रांताओं से बच गया होता :)। सुन्दर रचना के लिए हार्दिक बधाई।
वाह !!!!!! अरुण भाई वाह !!!! आपने भाव प्रवाह मे ऐसे बहा दिया , मेरे शब्द गुम हो गये है !! समझ नही पारहा हूँ तारीफ कैसे करूँ !! बहुत बहुत बधाई !!
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online