आज फिर याद कई, ज़ख्म पुराने आये
धड़कने बंद करो, शोर मचाने आये//१
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लेके मरहम न सही, हाथ में गर खंजर हो
हक़ उसी को है, मेरा दर्द बढ़ाने आये//२
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इश्क़ में आह की दौलत के, बदौलत हम हैं
कोई तो हो जो मेरा, ज़ख्म चुराने आये//३
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रोते-रोते ही कहा, मुझको मुआफ़ी दे दो
अश्क़ अपना जो, समंदर में छुपाने आये//४
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कम चरागें न जलाई थी, तेरी यादों की
जल रहा दिल है, उसे कोई बुझाने आये//५
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आशिक़ी मौत से बदतर है, बता दूं न कहीं
सोचकर लोग यही, मुझको मनाने आये//६
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दर्द हो, ज़ख्म हो, आँसू हो मेरे दामन में
कोई ऐसे भी कभी, मुझको सताने आये//७
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खौफ़ है, जुर्म है, ‘इंसान’ बने रहना भी
है जो क़ुव्वत तो मुझे, ज़िद से हटाने आये//८
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‘नाथ’ कहता है भला, कौन बचा है इससे
मौत आनी है, किसी भी वो बहाने आये//९
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"मौलिक व अप्रकाशित"
वज्न : आज-21/फिर-2/याद-21/कई-12/ज़ख्म-21/पुराने-122/आये-22 [2122-1122-1122-22]
Comment
बहुत बहुत शुक्रिया ज़नाब अजय शर्मा साहब.........नमन !!!!!!!!!!!!!
‘नाथ’ कहता है भला, कौन बचा है इससे
मौत आनी है, किसी भी वो बहाने आये//९ akhri sher bahut khoob
बहुत बहुत शुक्रिया श्री सौरभ पाण्डेय साहब.....हार्दिक आभार एवं नमन
बेहद उम्दा ग़ज़ल ... दिल से दाद कुबूल करें... .
नमन श्री चंद्रशेखर पाण्डेय साहब.....बहुत बहुत शुक्रिया इस हौसला-आफजाई के लिए....हार्दिक आभार !!!!!!!
रोते-रोते ही कहा, मुझको मुआफ़ी दे दो
अश्क़ अपना जो, समंदर में छुपाने आये//४
.वाह्ह्ह्ह्ह्ह्ह क्या कहा और खूब कहा। बधाई
नमन डॉ आशुतोष मिश्रा साहब ....हौसला-आफज़ाई के लिए तहे-दिल से शुक्रिया.....आपने ग़ज़ल को सराहा, हार्दिक प्रसन्नता हुई...पुनश्च: नमन .....!!!!!
आशिक़ी मौत से बदतर है, बता दूं न कहीं
सोचकर लोग यही, मुझको मनाने आये//६
.
दर्द हो, ज़ख्म हो, आँसू हो मेरे दामन में
कोई ऐसे भी कभी, मुझको सताने आये//७
.आपकी ग़ज़ल का हर शेर मुझे बेहद भाया पर ये दो शेर मुझे बिशेष रूप से पसन् आये ..इस शानदार ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई ..सादर
नमन वंदना जी ....बहुत बहुत शुक्रिया आपको यह शे'र बहुत पसंद आया.....शुक्रगुजार हूँ आपका.......
नमन श्री विजय निकोरे साहब.......बहुत बहुत शुक्रिया आपके स्नेहाशीष के लिए....हृदय-तल से आभार व्यक्त करता हूँ....स्वीकार करें......पुनश्च: बहुत बहुत शुक्रिया.....!!!!
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