मन की अंतर्वेदना , कहीं बह ना जाए आंसुओ में !
बहुत टुटा हूँ ,समेट लो बाजुओं में !
अपमान के ना जाने कितने घूंट पी चूका !
पर प्यासा हूँ , डूब जाने दो आँखों में !
घना होता जाता है ये अन्धकार क्यों ?
एक दिया तो उम्मीद का जलाओ रातो में !
तिरस्कार किया गया , हिकारत से देखा गया !
ना जाने कैसा भाग्य है मेरे इन हाथो में !
लौट जाओ कि अब रंगीन जवानी गुजर चुकी !
हासिल होगा क्या अब इन मुलाकातों में !
आदत सी हो गयी है जख्मो पे मरहम न लगा !
बार बार उपहार सरीखे मिलते है मुझे आघातों में !
भोर हो गयी है , निंद्रा टूट गयी है !
वरना बर्बाद बहुत हुआ हूँ तेरे वादों में !
-----------डॉ. अनुराग सैनी ------------
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
//गज़ल लिखना तो शायद बस में नही है //
आदरणीय अनुराग भाई , ऐसी बात बिलकुल नही है आप भी प्रयास करें तो ग़ज़ल लिख सकते है , बस एक बार तय कर लीजिये सीखना है तो सीख जायेंगे , ये ओबीओ का मंच सौभाग्य से मिलता है , मेरी प्रार्थना है फायदा उठा लीजिये ! आप बहुत गुणी लोगों के बीच है !! सादर !!
जब रचना ऐसी हो कि वो विधा विशेष की लगे पर हो न और उस पर भी रचनाकार की तरफ से ये उल्लेख न हो कि वास्तव में उसने क्या रचने का प्रयास किया है तो पाठक के लिए मुश्किल ही होती है कि वो रचना पर क्या कहे, खासकर ओबीओ जैसे मंच पर!
भावों को शिल्प का आवरण भी देने का प्रयत्न करें आदरणीय ताकि सम्प्रेषण प्रभाव छोड़ने में सक्षम हो...
सादर शुभेच्छाएँ
आदरणीय गज़ल लिखना तो शायद बस में नही है क्योंकि इस फन की समझ नही है बस एक शौंक है लिखने का , आप सभी के मार्गदर्शन और प्रोत्साहन की आकांक्षा सदैव रहेगी ! बहुत आभार सभी का !
आदरणीय अनुराग भाई , सुन्दर रच्ना के लिये आपको बहुत बधाई !!
बहुत बढ़िया .... कोशिश को प्रणाम ..! लिखते रहिये साहब :)
आभार आप सभी महानुभावो का !
आदरणीय प्रयास अच्छा है किन्तु बहर और शिल्प पर आपको ध्यान देना है रचना आपसे श्रम की मांग कर रही है प्रयासरत रहें साथ ही साथ यहीं ओ बी ओ पर पाठशाला में जाकर ग़ज़ल की कक्षा या ग़ज़ल की बातें का अनुसरण कर ग़ज़ल सीखें. आप जल्द ही सुधार महसूस करेंगे. इस प्रयास पर बधाई
प्रयास अच्छा है आदरणीय डाक्टर साहब। बधाई। बह्र और कहन में सुधार की गुंजाईश हमेशा होती है, इस लिहाज से आप पुनर्विचार कर लें। आभार।
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