For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

जन्मा-अजन्मा के भेद से परे

एक सत्य- माँ!

 

तुम ही तो हो

जिसने गढ़ी

ये देह, भाव, विचार,

शब्द!

 

रूप-अरूप-कुरूप में

झूलती देह

गल ही जाएगी

 

भाव, विचार

थिर ही जायेंगे

 

अभिव्यक्ति को तरसते

स्वप्न-चित्र

तिरोहित हो जायेंगे

 

फिर भी चाहना के

उथले-छिछले जल में

डूबते-उतराते

बहक ही जाते हैं  

उस राह पर

जिसके दोनों तरफ हैं ठूंठ

बरसात और धूप में

मुँह बिराते

 

यह राह खो जाती है

दूर क्षितिज में

जहाँ से रोज़

उगता और अस्त होता है

सूर्य

 

इस राह से परे

पगडंडियों के छोर पर

मंदिर की घंटियाँ

निशब्द हैं

 

माँ! शब्द दो!

अर्थ दो!

          - बृजेश नीरज

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 810

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by ram shiromani pathak on September 27, 2013 at 4:51pm

जन्मा-अजन्मा के भेद से परे

एक सत्य- माँ!

 

तुम ही तो हो

जिसने गढ़ी

ये देह, भाव, विचार,

शब्द!//////////////

प्रारंभ की ये पंक्तियाँ ही ध्यान खीच लेती है भाई ,सुन्दरतम///बहुत बहुत बधाई आपको //सादर

 

Comment by Saarthi Baidyanath on September 27, 2013 at 12:08pm

वन्दनीय और सराहनीय रचना ...बढ़िया ! बधाई स्वीकार करें ...नमन सहित -सारथी :)

Comment by अरुन 'अनन्त' on September 27, 2013 at 11:52am

आदरणीय बृजेश भाई जी क्या कहूँ इस सुन्दर अप्रितम हृदयस्पर्शी अभिव्यक्ति पर हृदयतल से भूरि भूरि बधाई स्वीकारें.

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on September 26, 2013 at 11:57pm

आदरणीय बृजेश जी, बहुत सुंदर रचना, बहुत बहुत बधाई आपको

Comment by बृजेश नीरज on September 26, 2013 at 10:12pm

आदरणीय प्राची जी, इस उत्साहवर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on September 26, 2013 at 10:05pm

समुच्चय में बहुत ही खूबसूरत रचना 

कई जगह बीच में ठहर गयी ...डूब गयी... 

अभिव्यक्ति को तरसते

स्वप्न-चित्र

तिरोहित हो जायेंगे................. उफ्फ पीड़ा भी है पर क्या स्वीकारोक्ति है, बोध है ..वाह !

फिर भी चाहना के

उथले-छिछले जल में

डूबते-उतराते

बहक ही जाते हैं  .................बहुत खूब 

उस राह पर

जिसके दोनों तरफ हैं ठूंठ.......सुन्दर शब्द चित्र 

बरसात और धूप में

मुँह बिराते

इस राह से परे

पगडंडियों के छोर पर

मंदिर की घंटियाँ

निशब्द हैं....................निःशब्दता की ख़ूबसूरती 

माँ! शब्द दो!

अर्थ दो!...................... सापेक्ष व्यक्त की चाहना 

सादर शुभकामनाएं 

Comment by बृजेश नीरज on September 26, 2013 at 10:00pm

आदरणीय गिरिराज जी आपका हार्दिक आभार!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 26, 2013 at 9:29pm

आदरणीय बृजेश भाई , बहुत सुंदर रचना , आपको हार्डिक बधाई !!

Comment by बृजेश नीरज on September 26, 2013 at 6:16pm

आदरणीय अभिनव जी आपका हार्दिक आभार! आपके शब्दों से बहुत बल मिला.

Comment by बृजेश नीरज on September 26, 2013 at 6:15pm

आदरणीय रविकर जी आपका आशीष मिला ये मेरे लिए सौभाग्य की बात है.

सादर!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"सभी सदस्यों से रचना-प्रस्तुति की अपेक्षा है.. "
15 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। लम्बे अंतराल के बाद पटल पर आपकी मुग्ध करती गजल से मन को असीम सुख…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Nov 17
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Nov 17
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Nov 17
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Nov 17
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Nov 17

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service