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नख-दंत के संसार में गुम

ढूंढता निज मर्म हूँ  मैं

ये रूचिर

रूपक तुम्‍हारे

गुंबजों की

पीढि़यां

दंगों के

फूलों से चटकी

कुछ आरती,

कुछ सीढि़यां

थुथकार की सीली धरा पर

सूखता गुण-धर्म हूँ मैं

रंगों की

थोड़ी समझ है

कृष्‍ण तक तो

श्‍वेत था

आह्लाद के

परिपाक में भी

एकसर

समवेत था

युगबोध पर कहता मुझे है

कि नहीं यति-धर्म हूँ मैं

तन ऐंठती

धूसर हवाएं

छीजता

विश्‍वास है

प्राचीर में

पैबस्‍त जड़ भी

करती मेरा

उपहास है

किरदार जो आए नए हैं

कहते हैं अपकर्म हूँ मैं

अब कोई

सुनता कहां है

इस पुरा

फ़नकार को

अभ्‍यस्‍त हैं

अब यूथ सारे

सीत्‍कार को

चीत्‍कार को

चीथड़े वल्‍कल मेरे अब

जीर्ण सा इक वर्म हूँ मैं

(सर्वथा मौलिक एवं अप्रकाशित)

यति  - धर्म : सनातन धर्म के अर्थ में प्रयुक्‍त

वर्म : घर के अर्थ में प्रयुक्‍त

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Comment

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Comment by annapurna bajpai on September 28, 2013 at 12:21am

किरदार जो आए नए हैं

कहते हैं अपकर्म हूँ मैं

अब कोई

सुनता कहां है

इस पुरा

फ़नकार को

अभ्‍यस्‍त हैं

अब यूथ सारे

सीत्‍कार को

चीत्‍कार को

चीथड़े वल्‍कल मेरे अब................... सुंदर पंक्तियाँ बधाई आपको । 

Comment by ram shiromani pathak on September 27, 2013 at 4:56pm

ये रूचिर

रूपक तुम्‍हारे

गुंबजों की

पीढि़यां

दंगों के

फूलों से चटकी

कुछ आरती,

कुछ सीढि़यां

थुथकार की सीली धरा पर

सूखता गुण-धर्म हूँ मैं///ज़ोरदार

बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति राजेश भाई //हार्दिक बधाई आपको //सादर

Comment by Meena Pathak on September 27, 2013 at 3:07pm

चीथड़े वल्‍कल मेरे अब

जीर्ण सा इक वर्म हूँ मैं..........................बहुत बहुत बधाई 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on September 27, 2013 at 12:37pm

अति सुंदर, भावनात्मक रचना, बधाई स्वीकारे आदरणीय  राजेश जी

Comment by राजेश 'मृदु' on September 27, 2013 at 12:34pm

आदरणीय अरून शर्मा'अनन्‍त' जी, आपका आभार, जो भी सीख रहा हूं सबके सान्निध्‍य में ही सीख रहा हूं, सादर

Comment by राजेश 'मृदु' on September 27, 2013 at 12:33pm

आदरणीय अजय कुमार सिंह जी, आपका हार्दिक आभार

Comment by राजेश 'मृदु' on September 27, 2013 at 12:32pm

आदरणीय गिरिराज जी, आपकी उपस्थिति से अनुगृहित हुआ, सादर

Comment by अरुन 'अनन्त' on September 27, 2013 at 12:16pm

आदरणीय राजेश भाई आप इस शैली में निपुण हैं बहुत ही सुन्दरता से अपनी बात शब्दों के जरिये कह जाते हैं बेहद सशक्त प्रस्तुति भाई जी बधाई स्वीकारें.

Comment by अजय कुमार सिंह on September 26, 2013 at 9:28pm

भावपूर्ण कविता के सृजन पर हृदय से बधाई राजेश जी. 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 26, 2013 at 9:14pm

आदरणीय राजेश भाई , बहुत ही सुदर रचना हुई है , आपको हार्दिक बधाई !!

कृपया ध्यान दे...

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