थाल किरणों का सजाकर
भोर देखो आ गयी
रात भी थक-हारकर
फिर जा क्षितिज पर सो गयी
चाँद का झूमर सजा
रात की अंगनाई में
और तारे झूमते थे
नभ की अमराई में
चाँदनी के नृत्य से
मदहोशियाँ सी छा गयी
तब हवा की थपकियों से
नींद सबको आ गयी
सूर्य के फिर आगमन की
जब मिली आहट ज़रा
जगमगाया आकाश सारा
खिल उठी ये धरा
छू लिया जो सूर्य ने
कुछ यूँ दिशा शरमा गयी
सुर्ख उसके गाल देखे,
हर कली मुस्का गयी
ज़िन्दगी भर स्याह्पन
हम साथ में ढोया किये
लालचों के भँवर में
हम भाव हर खोया किये
खिल उठी संवेदनाएं
रौशनी यूँ छा गयी
इक नयी फिर आस लेकर
भोर, लो, यह आ गयी
- बृजेश नीरज
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
आदरणीय सौरभ जी, कुछ शब्द, सच कहूं तो, छूट नहीं गए बल्कि ढूंढें नहीं मिले. अपने चुने शब्द कभी-कभी इतने हावी हो जाते हैं कि नए शब्द अपनी जगह नहीं बना पाते. ऐसे में ही एक मार्गदर्शक की जरूरत होती है जो शब्दों के मोह से बाहर निकाल सके.
आपकी बात का उत्तर सबको देना चाहिए यहाँ !
मैं अपनी बात कहूं तो मेरे लिए ये मंच और आप कितना महत्व रखते हैं ये मैं महसूस ही कर सकता हूँ, व्यक्त नहीं कर सकता. मेरे भावों और शब्दों को इस मंच और विशेषकर आपने जो स्वरुप दिया है, उसी की देन है कि मेरा रचनाकार आज साँसे ले पा रहा है!
आपको नमन!
सादर!
यही मैं आपसे सुनना चाहता था, भाई बृजेशजी, कि आपने इस मात्रिकता या वर्ण-निर्वहन को अनायास होने दिया है या आपका यह आग्रही प्रयास था.
सुन कर अच्छा लगा कि आपने इसे मात्रिकता और वर्णिकता पर साधा है.
फिर ऐसे कैसे कई शब्द छूट गये थे कि पदों का कुल वज़न ही गड़बड़ा रहा था ?
मैंने जो सुझाव और परिवर्तन किया है वो समीचीन लगे हैं या नहीं ?
इसी पर एक और बात आपसे... और आपके माध्यम से भी.. ..
क्या मेरे वैचारिक या कथ्यात्मक या व्याकरण सम्बन्धी सुझाव अथवा रचना में किये गये परिवर्तन आपको आपकी व्यक्तिगत सोच, आपकी वैयक्तिक वैचारिकता, आपके नितांत अपने शब्द और उनके चयन, आपके स्व-अनुभूत तथ्यों आदि पर कोई अतिक्रमण तो नहीं लगते ? कि, सौरभ के इस तरह के सुझावों से एक रचनाकार के तौर पर रचनाकारों का कुछ रह ही नहीं जाता ? स्पष्ट बताइयेगा.
क्योंकि आपके प्रस्तुत गीत पर जो परिवर्तन (?) हुए हैं, उसमें आप ही एक रचनाकर के तौर पर दिखते हैं न कि मैं !
लेकिन व्यवस्था सही होने से रचनात्मकता प्रभावी हुई ऐसा मुझे प्रतीत होता है.
आप बेलाग कहियेगा.
शुभ-शुभ
आदरणीय सौरभ जी, इस गीत को मैंने २१२२, २१२२, २१२२, २१२ पर लिखने का प्रयास किया था. लेकिन कहीं-कहीं अटक गया. और अटका भी ऐसा कि निकलने का रास्ता नहीं सूझ रहा था. प्रयास मैंने बहुतेरे किया कई दिन और कई बार.
ये भी सही है कि कई बार मैं वास्तव में उकताकर रचना को ज्यों का त्यों छोड़ ही देता हूँ. इस कमी को दूर करने का प्रयास कर रहा हूँ. शायद आपको आगे की रचनाओं में ऐसा आभास न हो.
नहीं, यह मेरे प्रश्न का उत्तर नहीं हुआ बृजेश भाई. आप मेरे प्रश्न पुनः ग़ौर करें. यदि ध्यान दें तो उस प्रश्न का अपना महत्व है.
शुभेच्छाएँ
आदरणीया गीतिका जी आपका हार्दिक आभार!
आदरणीय सौरभ जी, आपका हार्दिक आभार! आपने जो संशोधन किये हैं वही उचित हैं.
सच यही है कि मैंने उकताकर ही इसे इस रूप में ही पोस्ट कर दिया था. दरअसल, बहुत प्रयास के बाद भी उन जगहों पर संशोधन मुझे सूझ नहीं रहे थे. या ये भी हो सकता है की मेरे शब्द दिमाग में कुछ यूँ रच-बस गए कि नए शब्द जगह नहीं बना सके.
आपका एक बार फिर हार्दिक आभार!
सादर!
बहुत सुंदर नवगीत!! बधाई स्वीकारें आदरणीय बृजेश भाई जी!
आप मेहनत करते हैं साफ दिखता है.
लेकिन, बृजेशभाईजी, अपनी मेहनत से आप अचानक खुद ही उकता जाते हैं ! क्यों भई ?
इतने सुन्दर नवगीत/गीत को आपने जिस विन्यास में बाँधा है यदि उसे साझा करें तो आगे विशेष उचित होगा.
वैसे अपनी समझ के अनुसार, मैं आपके प्रस्तुत गीत के विन्यास को जैसा समझ पाया हूँ, उसके अनुसार आपकी रचना को पुनः प्रस्तुत कर रहा हूँ. बताइये क्या यह अधिक उचित नहीं होता ?
थाल किरणों का सजाकर
भोर देखो आ गयी
रात अलसायी बढ़ी
पच्छिम क्षितिज पर छा गयी
चाँद का झूमर सजा था
रात की अंगनाई में
और तारे
झूमते थे
नभ की उस अमराई में
चाँदनी के नृत्य से
मदहोशियाँ सी छा गयीं
तब हवा की
थपकियों से
नींद सबको आ गयी
सूर्य के फिर
आगमन की
जब मिली आहट ज़रा
जगमगाया था गगन
खिल-खिल उठी थी ये धरा
छू लिया ज्यों सूर्य ने
कुछ यों दिशा शरमा गयी
सुर्ख उसके गाल, जैसे,
हर कली मुस्का गयी
ज़िन्दगी भर
स्याहपन हम
साथ में ढोया किये
लालचों की घुर्रियों में
भाव हर खोया किये
जग गयी संवेदनाएं
रौशनी यूँ छा गयी
इक नयी-सी आस लेकर
भोर, लो ..
फिर आ गयी
कविता के निहितार्थ पर कुछ नहीं कहूँगा. कविता सकारात्मकता और उल्लास के स्वर से पगी है और उसके लिए बार-बार बधाई.. .
शुभेच्छाएँ
आदरणीया राजेश जी आपका हार्दिक आभार! आपका आशीष मेरी रचना को मिला, मैं धन्य हुआ!
आदरणीया प्राची जी आपका हार्दिक आभार!
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