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थाल किरणों का सजाकर

भोर देखो आ गयी

रात भी थक-हारकर

फिर जा क्षितिज पर सो गयी

 

चाँद का झूमर सजा

रात की अंगनाई में

और तारे झूमते थे

नभ की अमराई में

चाँदनी के नृत्य से

मदहोशियाँ सी छा गयी

तब हवा की थपकियों से

नींद सबको आ गयी

 

सूर्य के फिर आगमन की

जब मिली आहट ज़रा

जगमगाया आकाश सारा

खिल उठी ये धरा

छू लिया जो सूर्य ने

कुछ यूँ दिशा शरमा गयी

सुर्ख उसके गाल देखे,

हर कली मुस्का गयी

 

ज़िन्दगी भर स्याह्पन

हम साथ में ढोया किये

लालचों के भँवर में

हम भाव हर खोया किये

खिल उठी संवेदनाएं

रौशनी यूँ छा गयी

इक नयी फिर आस लेकर

भोर, लो, यह आ गयी

                - बृजेश नीरज

(मौलिक व अप्रकाशित)

 

 

 

Views: 794

Comment

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Comment by Aarti Sharma on September 30, 2013 at 9:25am

बेहतरीन रचना आदरणीय बृजेश नीरज जी..बधाई स्वीकारें..

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on September 30, 2013 at 9:10am

चाँद का झूमर सजा

रात की अंगनाई में

और तारे झूमते थे

नभ की अमराई में

चाँदनी के नृत्य से

मदहोशियाँ सी छा गयी

तब हवा की थपकियों से

नींद सबको आ गयी..

बेहद खुबसूरत भावों से पिरोयी रचना, अनुपम रचना, बहुत बहुत बधाई आदरणीय बृजेश जी

Comment by बृजेश नीरज on September 30, 2013 at 6:43am

 आदरणीय निकोर साहब आपका हार्दिक आभार! आपका सुझाव उचित है!

Comment by बृजेश नीरज on September 30, 2013 at 6:39am

 आदरणीय हेमंत जी आपका हार्दिक आभार!

Comment by vijay nikore on September 30, 2013 at 4:21am

Comment by vijay nikore just now           Delete Comment            

आदरणीय बृजेश जी:

 

आपकी यह रचना अति मनमोहक लगी। 

 

// खिल उठी संवेदनाएं

रौशनी यूँ छा गयी

इक नयी फिर आस लेकर

भोर, लो, यह आ गयी// ... यह भाव बहुत अच्छे लगे ...

 

एक विचार है.. यदि आप ठीक समझें तो ...

// इक नयी फिर आस लेकर

   भोर, लो, यह आ गयी// ............  इसको यदि ..

 

   इक नयी फिर आस लिए

   भोर, लो, यह आ गयी        ....     लिखें तो इससे शायद यह प्रस्तुति और भी लयात्मक हो जाए।

 

आपको हार्दिक बधाई।

विजय निकोर

Comment by hemant sharma on September 30, 2013 at 12:35am

बहुत ही सुन्दर आदरणीय ब्र्जेश जी, बधाई आपको...

Comment by बृजेश नीरज on September 29, 2013 at 11:27pm

 आदरणीया अन्नपूर्णा जी आपका हार्दिक आभार!

Comment by annapurna bajpai on September 29, 2013 at 10:44pm

आदरणीय बृजेश जी बेहद सुंदर रचना  मन मोह लिया । बहत बधाई आपको । 

Comment by बृजेश नीरज on September 29, 2013 at 9:46pm

आदरणीया मीना जी आपका हार्दिक आभार!

Comment by Meena Pathak on September 29, 2013 at 8:36pm

ज़िन्दगी भर स्याह्पन

हम साथ में ढोया किये

लालचों के भँवर में

हम भाव हर खोया किये

खिल उठी संवेदनाएं

रौशनी यूँ छा गयी

इक नयी फिर आस लेकर

भोर, लो, यह आ गयी.......................बहुत उम्दा ... बधाई आप को 

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