किसी सफ़र से कम नहीं है मेरी जिंदगी !
कुछ पल ठहरी , और फिर चल दी!
ना राहो का पता , ना मंजिल की खबर !
भटक रहा हूँ कभी इस डगर, कभी उस डगर !
कभी सर्दी की ठिठुरन , कभी गर्म लू के थपेड़े !
कभी खुशियों की आहट , कभी गम के घेरे !
कभी बारिश का मौसम , कभी दिन के उजाले !
कभी विष के घूंट , कभी मय के प्याले !
ना कोई हमराह , ना कोई संगी साथी !
मगर बढ़ते कदम ये है की रुकते नहीं है !
मीलों चल चुके है मगर थकते नहीं है !
ना है कोई दुश्मन , ना कोई प्राणप्यारा !
मेरे इस सफ़र का कहाँ है किनारा ?
कुछ निकल गए है आगे , कुछ पीछे छुट गए है !
मगर यादो के निशा है की मिटते नही है !
चला जा रहा हूँ यादों को साथी बनाकर !
अपनो और परायो को सबको भुलाकर !
बहुत कुछ पाकर , बहुत कुछ लुटाकर !
तेरा हूँ सबकुछ तुझी में समाकर !
पल भर तो कर लूँ तेरी बंदगी !
किसी सफ़र से कम नहीं है मेरी जिंदगी !
कुछ पल ठहरी , और फिर चल दी!
लालसाओ , वासनाओं में बहा जा रहा हूँ !
मुझे क्या खबर मैं कहाँ जा रहा हूँ !
विषय वासनाओं में लिप्त हूँ मैं इस कदर !
खो गया है पता छुट गयी है डगर !
अहम् ये मेरा मुझे डुबो रहा है !
सुख चैन ये मेरा सब खो रहा है !
झूठ , बेईमानी और कपट के सहारे !
ढूंढ रहा हूँ मैं मोती बैठ दरिया किनारे !
चापलुसी की बैसाखीयों पे चला जा रहा हूँ!
ना जाने कब मिटेगी ये मेरे मन की गंदगी !
किसी सफ़र से कम नहीं है मेरी जिंदगी !
कुछ पल ठहरी , और फिर चल दी!
----------------------डॉ. अनुराग सैनी --------------------
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
सुन्दर अभिव्यक्ति आदरणीय अनुराग भाई जी,बहुत बधाई !!
हार्दिक आभार आप सभी का ! आपके उत्साहवर्धन का सदा आकांक्षी !
जीवन सफ़र में दिग्भ्रमित राही की दशा को प्रस्तुत करती अभिव्यक्ति
शुभकामनाएं
आदरणीय अनुराग भाई जी जिंदगी की यही रीत है सुन्दर प्रस्तुति बधाई स्वीकारें.
आदरणीय अनुराग भाई , सुन्दर रचना , और सुन्दर भाव !! आपको रचना के लिये बहुत बधाई !!
बहुत बहुत शुक्रिया
आदरणीय डॉ अनुराग जी जीवन का सही चित्रण किया है आपने अपनी इस रचना में, आपको बधाई।
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