For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

रहने दो - (रवि प्रकाश)

रहने दो
मुक्ता-माला
जटाजूट
चाहे दे दो।
बहने दो
यौवन-हाला
गरल-घूँट
चाहे दे दो॥
तुम रखना
मधुशालाएँ
कालकूट
मुझको देना।
तुम रचना
जयमालाएँ
भस्म-भूत
मुझको देना॥

पा लेना
आधार तुम्हीं
निराधार
चाहे दे दो।
गा लेना
गौरव-गाथा
व्यथा-भार
चाहे दे दो॥
चूर करो
मंज़िल मेरी
चकफेरी
फिर मुझको दो।
दूर करो
बंसी-वीणा
रणभेरी
फिर मुझको दो॥

थोड़े से
रोड़े पा कर
असंभाव्य
रच डालूँगा।
अपनी ही
पीड़ा गा कर
महाकाव्य
कर डालूँगा॥
कुछ तिनके
देना मुझको
महासिन्धु
तर डालूँगा।
दे देना
केवल शीर्षक
चरम बिंदु
कर डालूँगा॥

मौलिक व अप्रकाशित॥

Views: 749

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on October 1, 2013 at 9:45am

पा लेना
आधार तुम्हीं
निराधार
चाहे दे दो।
गा लेना
गौरव-गाथा
व्यथा-भार
चाहे दे दो॥......अति सुंदर, बहुत प्रभावशाली रचना, बधाई स्वीकारें आदरणीय रवि जी

Comment by Ravi Prakash on September 30, 2013 at 8:21pm
आप सर्वथा सही है शिरोमणि जी।धन्यवाद।
Comment by ram shiromani pathak on September 30, 2013 at 7:58pm

थोड़े से
रोड़े पा कर
असंभाव्य
रच डालूँगा।
अपनी ही
पीड़ा गा कर
महाकाव्य
कर डालूँगा॥//// इन पंक्तियों के लिए बहुत बहुत बधाई भाई जी //सादर

असंभाव्य=असंभव यही होता है न भाई जी यदि मै सही हूँ // 

Comment by Meena Pathak on September 30, 2013 at 6:53pm

बहुत सुन्दर रचना | बधाई आप को आदरणीय 

Comment by Ravi Prakash on September 30, 2013 at 4:48pm
धन्यवाद अनुराग जी।
Comment by Ravi Prakash on September 30, 2013 at 4:46pm
कोटिश: धन्यवाद भंडारी जी।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 30, 2013 at 4:31pm
आत्मविश्वास से भरी हुई सुन्दर रचना के लिये आपको बधाई !!
Comment by डॉ. अनुराग सैनी on September 30, 2013 at 3:38pm

बहुत सुंदर ! कुछ कर गुजरने का एक जज्बा ! बधाई आपको !

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। लम्बे अंतराल के बाद पटल पर आपकी मुग्ध करती गजल से मन को असीम सुख…"
20 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Nov 17
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Nov 17

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service