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रहने दो - (रवि प्रकाश)

रहने दो
मुक्ता-माला
जटाजूट
चाहे दे दो।
बहने दो
यौवन-हाला
गरल-घूँट
चाहे दे दो॥
तुम रखना
मधुशालाएँ
कालकूट
मुझको देना।
तुम रचना
जयमालाएँ
भस्म-भूत
मुझको देना॥

पा लेना
आधार तुम्हीं
निराधार
चाहे दे दो।
गा लेना
गौरव-गाथा
व्यथा-भार
चाहे दे दो॥
चूर करो
मंज़िल मेरी
चकफेरी
फिर मुझको दो।
दूर करो
बंसी-वीणा
रणभेरी
फिर मुझको दो॥

थोड़े से
रोड़े पा कर
असंभाव्य
रच डालूँगा।
अपनी ही
पीड़ा गा कर
महाकाव्य
कर डालूँगा॥
कुछ तिनके
देना मुझको
महासिन्धु
तर डालूँगा।
दे देना
केवल शीर्षक
चरम बिंदु
कर डालूँगा॥

मौलिक व अप्रकाशित॥

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Comment

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Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on October 1, 2013 at 9:45am

पा लेना
आधार तुम्हीं
निराधार
चाहे दे दो।
गा लेना
गौरव-गाथा
व्यथा-भार
चाहे दे दो॥......अति सुंदर, बहुत प्रभावशाली रचना, बधाई स्वीकारें आदरणीय रवि जी

Comment by Ravi Prakash on September 30, 2013 at 8:21pm
आप सर्वथा सही है शिरोमणि जी।धन्यवाद।
Comment by ram shiromani pathak on September 30, 2013 at 7:58pm

थोड़े से
रोड़े पा कर
असंभाव्य
रच डालूँगा।
अपनी ही
पीड़ा गा कर
महाकाव्य
कर डालूँगा॥//// इन पंक्तियों के लिए बहुत बहुत बधाई भाई जी //सादर

असंभाव्य=असंभव यही होता है न भाई जी यदि मै सही हूँ // 

Comment by Meena Pathak on September 30, 2013 at 6:53pm

बहुत सुन्दर रचना | बधाई आप को आदरणीय 

Comment by Ravi Prakash on September 30, 2013 at 4:48pm
धन्यवाद अनुराग जी।
Comment by Ravi Prakash on September 30, 2013 at 4:46pm
कोटिश: धन्यवाद भंडारी जी।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 30, 2013 at 4:31pm
आत्मविश्वास से भरी हुई सुन्दर रचना के लिये आपको बधाई !!
Comment by डॉ. अनुराग सैनी on September 30, 2013 at 3:38pm

बहुत सुंदर ! कुछ कर गुजरने का एक जज्बा ! बधाई आपको !

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